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________________ 112 :: मूकमाटी-मीमांसा पीछे रचयिता की मानव कल्याण भावना ही छिपी हुई है, येन-केन-प्रकारेण वह लोक कल्याण के प्रति पाठक की भावनाओं का उद्रेक करना चाहता है : "पर के लिए भी कुछ करूं/सहयोगी-उपयोगी बनूं।" (पृ. २५९) इसी कल्याण भावना के अनुरूप पवन प्रलयंकारी बादलों के विरुद्ध खड़ा होता है और उन्हें ओलों सहित उड़ा ले जाकर पुनः उसी समुद्र में गिरा देता है। वातावरण के शान्त हो जाने पर फिर सभी कुछ नया और मंगलमय हो जाता है : "गगन की गलियों में,/नयी उमंग नये रंग/...नया मंगल तो/नया सूरज ...नयी सुधा तो निरामिषा/...नये छुवन में नये स्फुरण हैं।" (पृ. २६४-२६५) खण्ड चार-'अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' आकार (सम्पूर्ण काव्य ४८८ पृष्ठ में है जब कि यह चौथा खण्ड ही २२० पृष्ठों का है) और प्रकार (भाव एवं कला बोध) दोनों ही दृष्टियों से विशेष महत्त्व का है । वस्तुत: आरम्भ के तीनों खण्ड इसकी पृष्ठभूमि से ही हैं। उनमें उपदेश के तत्त्व तो प्रचुर मात्रा में हैं। परन्तु कथातत्त्व जो किसी भी प्रबन्धकाव्य के लिए नितान्त आवश्यक होता है, उसका सर्वथा अभाव है । इस चौथे खण्ड में आकर कथा-तत्त्व कुछ बल पकड़ता है, यद्यपि कथा की कोई एक समन्वित कड़ी नहीं बन पाती । कथा के जो सूत्र जगह-जगह छिटकेछितराये मिलते हैं, वे सामान्य दृष्टि से कहीं-कहीं हास्यास्पद से लगते हैं, जैसे-अवाँ की लकड़ियों का बोलना, कुम्भकार को उपदेश देना, अवाँ की जलती अग्नि भी बोलती है, कुम्भ की स्पर्शा (त्वचा संवेदना), नासा (घ्राण), आँख (दृष्टि) आदि का बोलना, अवाँ को जलाती हुई अग्नि का उपदेश, अवाँ की किसी स्वैरिणी ध्वनि की धुन, कुम्भ के मन के मनोभाव, नगर सेठ का मिट्टी के कुम्भ के प्रति अति आकर्षण, कुम्भ का मूल्य चुकाने की कोशिश करने पर भी कुम्भकार द्वारा मुफ्त में ही कुम्भ देने की जिद करना, किसी भी दशा में मूल्य स्वीकार न करना, दाताओं की उमड़ती भीड़, पात्र यानी अतिथि की सेवा के लिए धनिकों की कम्पटीशन लगाती आतुर भीड़-जिस तरह के दृश्य इस देश में बहुत सुलभ नहीं हैं-सारी महार्घ धातुओं के आगे मिट्टी के कुम्भ के प्रति प्रबलासक्ति, अतिथि सत्कार का अवसर पाने से धनिकों का कृतकत्य हो जाना, कुम्भ के मुख से कविता पाठ, कवि की लेखनी का बार-बार बीच में आ घुसना, गालों का कुण्डलों को समझाना, कुम्भ का सेठ को उपदेश, धातु कलशों का मिट्टी के कुम्भ से वाद-विवाद, रस का व हलवे तक का सम्भाषण, मच्छर और मत्कुण तक का धर्मोपदेश देना, सेठ के बीमार पड़ने पर हर विधि से योग्य चिकित्सकों के उपचार-निदान के ऊपर भी कुम्भ का उपदेश देना, प्राकृतिक चिकित्सा की विधि समझाना, माटी के कुम्भ के समझाने के अनुरूप चिकित्सकों द्वारा चिकित्सा किया जाना, स्वर्ण कलश द्वारा ईर्ष्या से जलकर आतंकवाद को आमन्त्रण दे सेठ को परिवार सहित समूल नष्ट कर देने की योजना बनाना, स्फटिक की झारी का माटी के कुम्भ का पक्ष समर्थन करना, कुम्भ का सेठ और उसके परिवार को सचेत करना, फिर कुम्भ के पीछे-पीछे पूरे परिवार का पलायन करना, मांसाहारी सिंह से प्रताड़ित हाथियों के दल का सेठ के परिवार की सहायता स्वीकारना और कुम्भ को गजमुक्ता की भेंट देना, आतंकवाद के दल का सेठ-परिवार पर आक्रमण, गज-दल द्वारा सेठ के परिवार की रक्षा करना, सर्यों के दल द्वारा न्याय-विचार और सेठ -परिवार को निर्दोष मान कर उनकी सहायता करना, प्रधान सर्प द्वारा किसी को भी न काटने की सीख सर्प-समाज को देना, सर्प-दल के प्रत्याक्रमण से आतंकवाद का पराजित होना, सर्प-समाज के नागनागिन के चमत्कार पैदा करने वाले धर्मोपदेश और नाग-मणियों का अर्पण, प्रलयंकारी वर्षा के उत्पातों से गज-गणों
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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