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________________ 108 :: मूकमाटी-मीमांसा "और यह भी शंका होती है, कि/वर्षा-ऋतु के अनन्तर शरद् ऋतु में हीरक सम शुभ्र क्यों होते?" (पृ.२३०) . "इसके सामने 'स्टार-वार'/जो इन दिनों चर्चा का विषय बना है विशेष महत्त्व नहीं रखता।" (पृ. २५१) कहीं-कहीं बात को खोलकर समझाने के चक्कर में बात को और भी उलझा दिया गया है, जैसे : "लब्ध-संख्या को परस्पर मिलाने से/९ की संख्या ही शेष रह जाती है। यथाः/९९४ २ = १९८, १+९+ ८ = १८, १+ ८ = ९।” (पृ. १६६) - इसी प्रकार बात को खोलने के प्रयास में भी अन्यथा श्रम रचयिता को करना पड़ा है, यथा : । “आना यानी जनन-उत्पाद है/जाना यानी मरण-व्यय है लगा हुआ यानी स्थिर-धौव्य है/और/है यानी चिर-सत् यही सत्य है यही तथ्य !" (पृ. १८५) “ 'स्' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल- संयत बनाती है सो. स्त्री कहलाती है।" (पृ. २०५) " 'वै' यानी निश्चय से/ खली' यानी धूर्ता-पापिनी है।” (पृ. ४०३) काव्य की कलात्मक सर्जना में प्राय: ही शब्दों को तोड़कर, मरोड़कर, उलटकर एक विशेष भाव सूचित करने का प्रयास कवि ने किया है। प्राय: इस तरह के प्रयास रसमय लगते हैं परन्तु कहीं-कहीं तो वे निरे चमत्कार प्रदर्शन मात्र लगते हैं, जैसे : "स्वयं राही शब्द ही/विलोम-रूप से कह रहा है-/रा"हो"ही"रा।" (पृ.५७) 0 "राख बने बिना/खरा-दर्शन कहाँ ?/रा'ख"ख"रा।" (पृ. ५७) 0 "लाभ शब्द ही स्वयं/विलोम-रूप से कह रहा है-/ला"म"म"ला।"(पृ.८७) 0 "मैं दोगला"मैं "दोगला,/मैं दोगला !!" (पृ. १७६) ० "इन का विलोम परिणमन हुआ है/यानी, न.''दीदी 'न।" (पृ. १७८) ० "धी-रता ही वृत्ति वह/धरती की धीरता है/और काय-रता ही वृत्ति वह/जलधि की कायरता है।" (पृ. २३३) इसी प्रकार इस काव्य में कुछ ऐसे शब्दों के प्रयोग हैं जो अब प्रयोग में नहीं रहे, अथवा वर्तमान काल तक आते-आते जिनके अर्थों में परिवर्तन हो गया है अथवा फिर जो प्रचलन में न होने के कारण अर्थवह नहीं रह गए हैं। बहुत सम्भव है कि हिन्दी-भाषा-क्षेत्र से भिन्न भाषा-भाषी क्षेत्र का होने के कारण और संस्कृत-प्राकृत की परम्परा से अधिक जुड़े होने के कारण आचार्यश्री ने ऐसे शब्दों का अधिक प्रयोग किया हो । जैसे- कलिलता, उपाश्रम, विराधना, कर्णिका, कृष्ण वर्ण, विरेचना, स्नात, स्नपित, अदय, उपधि, जनी, नीतकरम, आँखें पलकती नहीं, भास्वत, शम्य, वैयावृत्य, अदेसख, रहवासी, नीराग, तृपा, परीषह, असाता, अमाप, नरपों, विक्रिया, भामण्डल, श्वभ्र, सनील आदि ००००००
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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