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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 105 शान्त माहौल भी खौलने लगता है/ज्वालामुखी-सम ।" (पृ. १३१) हास्य रस को कहावत के साथ कहा है : “आधा भोजन कीजिए/दुगुणा पानी पीव । तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी/वर्ष सवा सौ जीव !" (पृ. १३३) रौद्र रस का नमूना इस प्रकार है : "भीतर बराबर बारूद भरा हुआ था ही/फिर क्या पूछना ! नाक में से बाहर की ओर/सघन घूम-मिश्रित कोप की लपटें लपलपाती लाली बहने लगी/...कोप की कोषिका नाक ही है।" (पृ. १३५) शान्त रस, वात्सल्य रस एवं करुण रस के मेल की एक शाब्दिक झाँकी इस प्रकार प्रस्तुत है : "करुणा-रस जीवन का प्राण है/घम-घम समीर-धर्मी है । वात्सल्य-जीवन का त्राण है/धवलिम नीर-धर्मी है। ...शान्त-रस जीवन का गान है/मधुरिम क्षीर-धर्मी है।” (पृ. १५९) गणित द्वारा तीन और छह संख्याओं की विपरीत एवं सम्मुख दिशाओं से विकृति और प्रकृति की सूचना मिलती है। कुम्भ पर चित्रित सिंह और श्वान को राजा एवं स्वार्थी वृत्तिवाले व्यक्तियों का प्रतीक माना है। 'ही' और 'भी' द्वारा पश्चिमी सभ्यता और भारतीय सभ्यता पर प्रकाश डाला है । 'मूकमाटी' में छोटे से वाक्य में भी शब्दों के प्रयोग बड़े सुन्दर हुए हैं : "मर हम मरहम बनें" (पृ. १७४); "मैं दो गला।" (पृ. १७५) धर्म कोरा अध्यात्म नहीं है, न कोरा पूजा-पाठ, न जप-तप या ध्यान-धारणा ही है। वह समूचा जीवन है जिसका एक आयाम तो देश-काल ज़रूर है किन्तु उसके साथ एक दूसरा आयाम भी है अपने आप को लाँघकर आगे जाने का भाव । उसका स्वभाव है गति का धारण । भारतीय चिन्तन में इसका समकक्ष शब्द 'अर्थ' है । उसी को और स्पष्ट करने के लिए उसे 'पुरुषार्थ' नाम से भी पुकारा गया है । धर्म तो स्वयं एक पुरुषार्थ है । शब्दों के विग्रह से शब्दों के अर्थ अनोखे हुए हैं। भिन्न प्रकार के शब्दों की नए ढंग से अभिव्यक्ति हुई है। इन शब्दों की नए प्रकार की अभिव्यक्ति के लिए जिन शब्दों की योजना हुई है उनमें भिन्न प्रयोग से एक स्वतन्त्र अर्थ उत्पन्न करने की शक्ति है। शब्द के विग्रह द्वारा शब्द विशेष का नवीन अर्थ द्योतन करने में सहायक होते हैं : "स्वप्न-स्व पन।" (पृ. २९५) ० “'ही' एकान्तवाद का समर्थक है।" (पृ. १७२) ० "'भी' अनेकान्त, स्याद्वाद का प्रतीक ।” (पृ. १७२) 0 “दोगला-दो गला।" (पृ. १७५) अभिव्यक्ति का यह निराला ढंग अपना स्वतन्त्र लावण्य रखता है। - कवि का काव्य नई जीवन-भूमि से उत्सर्जित हुआ है । यह शाश्वत संवेदन है । इस काव्य के भीतर कैसा मर्मपूर्ण
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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