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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 101 ब्रह्मानन्द सहोदर स्वयं प्रकाशरूप रस में होती है । आनन्दवर्धन, अभिनव गुप्त एवं मम्मट प्रभृति विद्वानों ने अज्ञानावरण से मुक्त शुद्धचैतन्य स्वरूप बना हुआ रति आदि स्थायी भाव ही रस बतलाया है-“भग्नावरणचिद्विशिष्टा रत्यादि: स्थायी भावो रस इति" (रसगंगाधर, प्रथम आनन) । प्रकृत काव्य भी उभय दृष्टिकोणों के प्रतिपादन में यथार्थतया सफल रहा है। काव्य में अंगी रस शान्त रस की पुष्टि में अंग रसों का भी यथोचित सहज प्रतिपादन मिलता है। मिट्टी की दलित पतितावस्था एवं नदी की बाढ़ में बहता हुआ सेठ परिवार के वर्णन में करुणा का स्रोत उमड़ पड़ता है। माँ धरती के सम्बोधन में वात्सल्य रस, बादलों की गड़गड़ाहट में भयानक, आतंकवाद के उपक्रमण में रौद्र और ओलावृष्टि के प्रतारण में बीभत्स, साहस पूर्वक आतंक का सामना करने में सेठ परिवार में वीर रस तथा पुत्र घट द्वारा धैर्य बँधाने में भी दया वीर, काव्य में और अधिक निखार लाता है। बदलियों के सौन्दर्य वर्णन में तो शृंगार रस स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। पात्रों के चयन में सन्तकवि का सहज नैपुण्यभाव झलकता है। काव्य का आधार ही समस्त प्रकृति की गोद है। नदी तरंगों की अठखेलियाँ, पर्वत-गुफाओं तथा शिखरों की रमणीयता, ऋतुओं की सप्तरंगी छटा आदि काव्य के प्राण हैं। लक्षणा एवं व्यंजना शक्ति के अनेक चित्र पद-पद पर काव्य में द्रष्टव्य हैं। हृदय को आनन्दप्रदायक याद>दया (पृ. ३८), राही>हीरा, राख>खरा (पृ. ५७), लाभ>भला (पृ. ८७), नदी>दीन (पृ. १७८), नाली>लीना (पृ. १७८), तामस>समता (पृ. २८४), रसना> नासर (पृ. १८१), धरती>तीरध (थ)(पृ.४५२), धरणी>नीरध(पृ.४५३) इत्यादि विलोम एवं अनुलोम अर्थपरक शब्दों के प्रयोग में कवि का नैपुण्य मननीय है । इसके अलावा सन्तकवि ने अनेक प्रसंगों पर कतिपय शब्दों की अत्यन्त सुन्दर निरुक्तियाँ की हैं। इनमें कुम्भकार (पृ. २८), गदहा (पृ. ४०), कृपाण (पृ. ७३), दो गला (पृ. १७५-१७६), नारी, महिला, अबला, माता, दुहिता, स्त्री, अंगना और सुता (देखें, पृ. २०२-२०७) आदि प्रमुख हैं। काव्य में प्रसंगवश सर्वत्र उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत्' (पृ. १८४) जैसे परिभाषा सूत्रों एवं मन्त्र-सम ‘खम्मामि खमंतु में' (पृ. १०५), 'धम्म सरणं पव्वज्जामि' (पृ. ७५), 'धम्मो दयाविसुद्धो' (पृ. ७०), 'दयाविसुद्धो धम्मो' (पृ. ८८) तथा 'वसुधैव कुटुम्बकम्' (पृ. ८२) आदि सुभाषित रत्नों का प्रयोग मिलता है, जो काव्य के सौष्ठव को बढ़ाते हैं। काव्य में प्रयुक्त अन्य सूक्ति बिन्दु भी पाठक के आकर्षण के केन्द्र हैं। यथा- 'बहना ही जीवन है' (पृ. २), 'आस्था के बिना रास्ता नहीं'(पृ. १०), 'दया का वतन निरा है' (पृ.७२), 'काया तो काया है/जड़ की छाया-माया है' (पृ. ९२), 'स्वभाव से ही मन चंचल होता है' (पृ. ९६), 'मन वैर-भाव का निधान होता ही हैं' (पृ. ९७), 'वात्सल्य जीवन का त्राण है' (पृ. १५९) इत्यादि । 'नाड़ी ढीली पड़ना' (पृ. २१३), 'गुरवेल कड़वी और नीम चढ़ी' (पृ. २३६), 'भीति बिना प्रीति नहीं' (पृ. ३९१), 'काँटे से काँटा निकाला जाता है' (पृ. २५६) जैसी लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी कम प्रयोग काव्य में नहीं हुआ है। काव्य में पाठक की रुचि में वृद्धि करने वाले और अन्य कतिपय तत्त्व भी विद्यमान हैं, जिनसे जीवन को उन्नत करने की प्रेरणा मिलती है, यथा : "नीति-नियोग की विधि बताता प्रीति-प्रयोग की निधि दिखाता।" (पृ. २५७) “आधा भोजन कीजिए/दुगुणा पानी पीव । ० तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी/वर्ष सवा सौ जीव !" (पृ. १३३) “आमद कम खर्चा ज्यादा/लक्षण है मिट जाने का ० कूबत कम गुस्सा ज्यादा/लक्षण है पिट जाने का।" (पृ. १३५)
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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