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________________ 102 :: मूकमाटी-मीमांसा "पाँव नता से मिलता है / पावनता से खिलता है । " (पृ. ११४) " हर प्राणी सुख का प्यासा है ।" (पृ. १४१) समाज का दर्पण होता है । महाकाव्य 'मूकमाटी' में विद्यमान भारत की राष्ट्रीय, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों की स्पष्ट झलक मिलती है। नारी का समाज में बराबर का दर्जा है। शिक्षित नारियों की संख्या बढ़ रही है। उन्हें संविधान द्वारा पहले से अधिक सम्मान और अधिकार प्रदत्त हैं, फिर भी स्वतन्त्र भारत में नारी का शोषण हो रहा है। उसकी दुर्गति की जाती है। पहले उसे प्रलोभन दिए जाते हैं और फिर तलाक । तलाक पर काव्य में कितना सुन्दर कटाक्ष किया गया है : "स्वस्त्री हो या परस्त्री,/ स्त्री- जाति का स्वभाव है, / कि किसी पक्ष से चिपकी नहीं रहती वह // अन्यथा, मातृभूमि मातृ पक्ष को / त्याग-पत्र देना खेल है क्या ? और वह भी / बिना संक्लेश, बिना आयास ! / यह पुरुष समाज के लिए / टेढ़ी खीर ही नहीं, / त्रिकाल असम्भव कार्य ' (पृ. २२४) जगत् पर अर्थवाद का आवरण है । भारत उससे अछूता नहीं । धनतन्त्र में न्याय भी सस्ता है तो जीवन उससे भी और अधिक सस्ता है । अधर्म ही धर्म बन रहा है। अपराधों की अपेक्षा अपराधियों की बाढ़ आ गई है । निरपराधी लूटे जाते, पकड़े जाते हैं और पीटे भी जाते हैं। रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं। गरीबी उन्मूलन के नारों में गरीबों को लूटा जाता है। करों की महत्ता है। महँगाई के मुख में कम आय वाले ही नहीं, मध्यमवर्गियों की गर्दनें फँसी हुई हैं। किसी को किसी पर विश्वास ही नहीं रह गया है। मानव मानवता से गिर गया है । भारत महापुरुषों, देशभक्तों की भूमि है किन्तु पद-लोलुपी राजसत्ता के मतवाले राजनेताओं की कथनी और करनी के भेदभाव ने भारत के गौरव को ठेस पहुँचाई है। उनके द्वारा लिए गए गलत निर्णयों एवं अहंभाव ने क्षेत्रवाद की विकराल समस्याएँ उत्पन्न की हैं। आज का भारत अलगाववाद, जातिवाद, नक्सलवाद और विशेषरूप से आतंकवाद के झंझावात में फँसा हुआ है। उसकी आर्थिक दशा डावांडोल है । इन्हीं सभी पक्षों का प्रासंगिक वर्णन किया गया है। इससे काव्य में कवि का नैपुण्य ही उजागर हुआ है। साथ ही कथित समस्याओं का समाधान भी सुझाया गया है और वह है- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त सिद्धान्त का सम्यक् परिपालन, निष्कामभाव (अपरिग्रह) से किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार की मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक पीड़ा न पहुँचा कर (अहिंसा), अनेकान्तवाद अर्थात् वस्तु की थार्थताको यथार्थ रूप से समझना, उसे समझाना और स्वयं परस्पर में इन अहिंसादि के परिपालन से ही प्राणी अपने जीवन को सुखी एवं समृद्ध बना सकता है। पू. ३९७ इनसे ही फूलता- फलता है वह "आरोग्य का विशाल-काय वृक्ष !
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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