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मूकमाटी-मीमांसा :: 93
इस सम्बोधन से मिट्टी का मौन भंग होता है । वह माँ के अश्रुतपूर्व मार्मिक भाव को समझ जाती है कि कर्मो का संश्लेषण होना, आत्मा से फिर उनका स्व-पर कारणवश विश्लेषण होना-ये दोनों कार्य आत्मा की ही ममतासमता की परिणति पर आधारित हैं। किन्तु चेतन की इस सृजन एवं द्रवणशीलता का ज्ञान एवं भान किसे है ? किसी को नहीं। बस, यहीं से शिल्पी गुरु कुम्भकार के चरणों में समर्पित मिट्टी के जीवन का स्वर्णिम काल प्रारम्भ हो जाता
निर्मोही, हित-मित-प्रिय, कारुणिक, समाधिस्थ शिल्पी गुरु कुम्भकार ने 'ओम्' का उच्चारण कर स्वकर्तव्य बोध से कुशाग्रबुद्धि-कुदाली से नदी तट की मिट्टी की परत खोदी। मिट्टी का मौन और उसके घावों को देख कारण पूछा, मिट्टी ने निर्दयता और उदारता में अन्तर स्पष्ट किया। इससे शिल्पी को उसकी सात्त्विकता भा गई । गुरु बोले'अति के बिना, इति का साक्षात्कार कहाँ ? और इति के बिना अथ (सत्य) का दर्शन कहाँ ? पीड़ा की अति ही, पीड़ा की इति है और उसकी इति ही सुख का अथ (सत्य) है।' बन्धनहीन, अल्पतन वेतनभोगी गदहे को स्वामी का इशारा हुआ, उसने अपदा मिट्टी पीठ पर लादी और चल पड़ा गन्तव्य की ओर । मार्ग में बोरी की रगड़ से छिलती हुई गदहे की पीठ पर, मिट्टी की सहसा दृष्टि पड़ी। खिरती हुई और पसीने से मिश्रित मिट्टी मलहम बनी । गदहे को सुख दिया । उसे स्व दशा का स्मरण हुआ । प्राणी विज्ञान का यथार्थ परिचय दया है। 'दया' का विलोम 'याद' है । स्व की याद ही स्वदया है। ज्ञात रहे कि वासना का विलास है मोह, जबकि दया का विकास मोक्ष है । एक इन्द्रियों का दास, जीवन का शत्रु है तो दूसरा समता-सौरभ, पीयूष-शृंगार एवं शुभंकर है।
कौन कहता है करुणा का वासना से सम्बन्ध है ? अरे, मिट्टी को अपना उपकार समझ गदहे को सोचने की दृष्टि मिली । उसने विचार किया : 'प्रभो ! मेरा नाम यथार्थ है । गद-रोग, हा-हारक अर्थात् मैं रोगों का विनाशक हूँ, हरण करने वाला।' उसकी कोई आकांक्षा नहीं रह जाती, अब वह अपहत भार है, उसकी भावना के फूल खिल गए हैं, वह परस्पर उपकार की भावना, मैत्री-गुण से ओत-प्रोत हो जाता है । लाजवती मिट्टी को भी राजरानी बनने का सुकृत सुअवसर मिल जाता है।
गुरुघर योगशाला, प्रयोगशाला है। मिट्टी को विवेक रूपी छन्नी से छाना जाता है। कंकड़ों से उसका पार्थक्य हो जाता है, क्योंकि ऋजुता एवं मृदुता में शिल्पकला का जो निखार है, वह वर्ण-संकरत्व में कहाँ ? नीर-क्षीर की जाति न्यारी है। दोनों एक रूप धवल हैं, परन्तु क्षीर में नीर मिल जाए तो नीर, क्षीर बन जाता है । इस नीर के क्षीर बनने में ही वर्ण-लाभ है । यही वरदान है । हिमखण्ड पानी पर तैरता है, वह सरलता का अवरोधक और अभिमान का प्रतीक है जबकि उसका आधार उपादान जल तरल और ऋजु है, उससे बीजांकुरित होता है जिसे हिम (पाला) नष्ट कर देता है। जल जीवन है, वहीं हिम उसका विनाशक । स्वभाव एवं विभाव की यही विशेषता है । राही का संयम की राह पर चलना, उसका हीरा (राही का विलोम) बनना है । तप में तपकर, कर्म को जलाकर उन्हें राख करना खरा (राख का विलोम) बनना है।
___ कुम्भकार का प्रणिधान मिट्टी का फुलाना - गीला करना है । कूप से जल लाने को वह रस्सी की ग्रन्थियों को खोलता है । कुम्भक प्राणायाम चलता है । अँगूठों का बल कम हुआ तो दाँतों ने मोर्चा संभाला, दाँत हिल उठे, मसूड़े छिल गए, तब रसना चुप न बैठी । ग्रन्थियों में कठिनाइयों का होना स्वाभाविक है । हिंसा की सम्भावना बढ़ती है । ग्रन्थि कुछ ढीली पड़ी, कारण कि गुरु निर्ग्रन्थ हैं।
शिल्पी की काया की छाया अन्धकूप में उतराती एक मछली पर पड़ी। मछली की मानसस्थिति ऊर्ध्वमुखी हुई और वह चिल्लाई-'मुझे अन्धकूप से निकालो, मेरा उद्धार करो।' कुम्भकार ने भी रस्सी से बालटी को बाँध धीमी गति