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मूकमाटी-मीमांसा :: 91
सन्धियों के अंग यथासम्भव प्रतिपादित होना चाहिए।
उपर्युक्त काव्य-लक्षण के आधार पर महाकाव्य का स्वरूप इस प्रकार निश्चित होता है : १. महाकाव्य का सर्गबद्ध होना आवश्यक है। २. काव्य का नायक धीरोदात्त गुण सम्पन्न कुलोत्पन्न क्षत्रिय अथवा देवता होना चाहिए। ३. शृंगार, वीर अथवा शान्त रस में से कोई एक रस प्रधान हो और अन्य रसों का प्रतिपादन गौण रूप से होना ___चाहिए। ४. सभी नाट्य सन्धियाँ अपेक्षित हैं। ५. कथा ऐतिहासिक होती है या सज्जनाश्रित, जिसमें जीवन, जगत् एवं प्रकृति के विभिन्न अंगों का मनोरम
चित्रण किया गया हो। ६. पुरुषार्थचतुष्टय-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-में से एक काव्य का फल होता है। ७. काव्यारम्भ में वर्ण्य वस्तु के निर्देश के साथ इष्टाशीर्वाद नमस्कार होता है। ८. सर्गों की संख्या आठ अथवा उससे अधिक होती है। एक सर्ग में एक ही छन्द का प्रयोग होता है किन्तु सर्ग का
अन्तिम छन्द बदल जाता है। ९. प्रकृति वर्णन में नगर, समुद्र, पर्वत, सन्ध्या, रात्रि, चन्द्र, सूर्योदय, यात्रा तथा ऋतुओं का वर्णन भी आवश्यक
१०. काव्य का नाम कवि अथवा चरित्र नायक के चरित्र-चित्रण के आधार पर होता है। ११. सर्ग में वर्णित कथा के आकार पर ही सर्ग का नामांकन किया जाता है।
___ प्रस्तुत 'मूकमाटी' काव्य को उपर्युक्त कसौटी पर कसकर यदि देखा जाए तो यह आठ से कम यानी चार खण्डों (सर्गों) से सम्पन्न रूपक महाकाव्य के प्राय: समस्त लक्षणों से युक्त है। धीरोदात्त गुणों से युक्त नायक गुरु कुम्भकार
और तदनुकूला आत्मारूप मिट्टी नायिका है । काव्य में अंगीरस शान्त है । शृंगार एवं करुण आदि शेष रसों का तथा सन्धियों का यथोचित प्रतिपादन किया गया है । कथावृत्त कल्पना पर आधारित सज्जनाश्रित है । जीवन, जगत् एवं प्रकृति के विभिन्न अंगों का सुन्दर चित्रण किया गया है। एक मात्र लक्ष्य भवसागर से पार होना है । मंगलमय आत्मा का कल्याण सर्वोपरि है । मुक्त छन्दोपेत काव्य में सन्तों की प्रशंसा तथा निहित स्वार्थी दुष्टों की निन्दा पग-पग पर द्रष्टव्य है। प्रकृति के रंग से चित्रित काव्य में सूर्य-चन्द्र, दिवा-रात्रि, सुबह-शाम, मध्याह्न, प्रदोष, ऋतु, सागर, संग्राम, मुनि और मन्त्र-तन्त्र आदि का विशद, विस्तृत, मनोज्ञ चित्रण मिलता है । काव्य के सर्गों का नामांकन खण्ड में निबद्ध घटना के अनुरूप है तथा मुक्तक छन्द का प्रयोग किया गया है।
___ आधुनिक विद्वानों ने इसके अतिरिक्त भी, काव्य के तत्त्व स्वीकार किए हैं, जिनमें देशकाल, वातावरण, संवाद, चरित्र-चित्रण एवं भाषा-शैली प्रमुख हैं। इन्हीं कतिपय लक्षणों को आधार बना कर प्रकृत काव्य का विश्लेषणात्मक अध्ययन करना अपेक्षित है। खण्ड -१. 'संकर नहीं : वर्ण-लाभ'
___ रात्रि का अवसान, उषा की चमक से भानु की निद्रा-भंग तो हुई किन्तु दिवाकर मुख ढंककर माँ की गोद का आनन्द जो ले रहा है । पूर्व में अरुणिमा छाई कुमुदिनियों ने अपने को सिकोड़ा, कमलनियाँ खिल उठीं । चंचल तारों ने स्वस्वामी का अनुकरण किया, सन्धिकाल में एक का गमन तो दूसरे का आगमन हो रहा है । यही सृष्टि का नियम है।