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________________ 80 :: मूकमाटी-मीमांसा - भारतीय साहित्य शास्त्र ने साहित्य की स्थिति का विवरण गहनता के साथ प्रस्तुत किया है और साहित्य में लिखित अनेक रूपों का निरूपण किया है । 'मूकमाटी' का पठन प्रारम्भ करने के पूर्व उसके आकार की ओर देखने पर सिद्ध हो जाता है कि कृति महाकाय है और विषय भी पंच तत्त्वों में से एक तत्त्व से सम्बन्धित है तथा जिसमें आकार ग्रहण करने की क्षमता है। परिणामत: मैं इसे 'तत्त्व' के आधार पर ही महान् स्वीकार करते हुए विचार करने की ओर अग्रसर होता हूँ । वैसे 'मूकमाटी' का विस्तार चार सौ अठासी पृष्ठों के मध्य फैला हुआ है । अत: महाकाय तो अपने आप ही है। भारतीय साहित्य शास्त्र में महाकाव्य की परिभाषा निरूपित है। समस्त पक्षों के साथ उच्च एवं श्रेष्ठ नायक आवश्यक है। विद्यासागरजी की कृति का केन्द्र-स्थल है-'माटी'-वह भी मूक । काव्य का नायक बोलता है, चलता है, कर्म करता है, परन्तु मूकमाटी तो केवल स्थिर रहती है । क्या मूकमाटी' को केवल विशाल आकार के कारण ही महाकाव्य स्वीकार कर लिया जाय ? यह पक्ष उतना सार्थक सिद्ध नहीं होता। जीवन की श्रेष्ठता उदात्त विचारों में निहित होती है एवं सद्भाव पूर्ण तथ्यों से परिपुष्ट होती है। काव्य में रम्यता को आचार्यों ने स्वीकार किया है । प्राचीन आचार्यों ने महाकाव्य की व्याख्या करते हुए उसके नायक में उदात्त भाव को विशेष रूप से देखने का प्रयास किया है । यह उदात्तता क्या है ? सहज रूप में स्वीकार करना पड़ता है कि उदात्तता ही जीवन के श्रेष्ठत्व को पुष्ट करती है। भारतीय साहित्य शास्त्र में उदात्त तत्त्व की स्थापना यत्रतत्र मिलती है । इसी के साथ उच्च विचार, साहस, शक्ति-सम्पन्नता आदि पक्षों का भी निरूपण मिलता है । इसी के आधार पर महाकाव्य के नायक की स्थिति को मान्य किया गया है । 'मूकमाटी' के सम्बन्ध में नायकत्व की स्थिति का क्रम सुस्पष्ट नहीं है, परन्तु कुम्भकार का चित्रण अनेक स्थितियों को चित्रित करता है एवं विशुद्ध भावों के निरूपण में पूर्ण सहयोग प्रदान करता है । मैं यहाँ महाकाव्य की विशिष्ट परिभाषा नहीं देना चाहता परन्तु प्राचीन आचार्यों के मतों के आधार पर ही आधुनिक भावबोध को ध्यान में रखते हुए कहना चाहता हूँ कि काव्य का कर्म सद्भावों की धारा को निरन्तर प्रवाहित करना है एवं जो काव्य इस दृष्टि से पुष्ट है वह अपने कलेवर और विचार तन्त्र के आधार पर महाकाव्य मान्य किया जा सकता है । आचार्य विद्यासागरजी की कृति 'मूकमाटी' अपने विचार तन्त्र, विशुद्ध भावात्मकता, उदात्त जीवन पक्ष का निरूपण, जीवन के सत्य पक्ष से सन्निहित इतिवृत्त, वस्तु व्यापार एवं संवादात्मक घटना चित्रण के साथ अनुपम भाव-व्यंजना के कारण महाकाव्य स्वीकार की जा सकती है। मैं इसे आधुनिक जीवन दृष्टि और सम-सामयिक वस्तु तन्त्र-योजना की पृष्ठभूमि के अन्तर्गत महाकाव्य स्वीकार करता हूँ। मैं इस मत का भी हूँ कि काव्य कृति जीवन के उदात्त पक्ष से पुष्ट होती हुई निरन्तर जीवन-सत्य के साथ, सद्भावों को पुष्ट करने में सक्षम है तो इसे महाकाव्य मान्य करना चाहिए । 'मूकमाटी' का जहाँ तक प्रश्न है, उसमें जीवन की अदम्य वासना के त्याग की और जीवन को निम्न से उच्च पथ की ओर अग्रसर करने की ही मूल चेतना निहित है । भारतीय आचार्यों के सदृश पाश्चात्य आचार्य लांजाइनस ने भी काव्य में उदात्त तत्त्व को महत्त्व पूर्ण माना है । मैं महाकाव्यत्व के सम्बन्ध में अधिक विचार न करते हुए अन्य पक्ष की ओर अग्रसर होता हूँ - यह कहकर कि 'मूकमाटी' निश्चित रूप से आधुनिक भावबोध एवं समसामयिकता के आधार पर उच्च कोटि का महाकाव्य है। 'मूकमाटी' का कथानक ___ आचार्यश्री विद्यासागर का काव्य 'मूकमाटी' मूलत: एक आचार्य की कृति है, जैन दर्शन के विद्वान् मनीषी की कृति है। सत्य के प्रति सजग सन्त कवि की कृति की ओर ध्यान देने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वह कृति के माध्यम से सूत्रपात करना चाहता है या अपने द्वारा अनुभूत जीवन-यात्रा के क्रमबद्ध इतिहास को शब्दमय रूप में प्रस्तुत करते हुए संसार के प्रति इस प्रकार अपने को संयत रखने का क्रम स्वीकार करना चाहिए। नियति के साथ किस प्रकार मानव की
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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