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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 77 २. द्विवेदी युग : ईस्वी सन् १९०० से १९१८ ईस्वी सन् तक ३. छायावादी युग : ईस्वी सन् १९१८ से १९३६ ईस्वी सन् तक ४. प्रगतिवादी युग : ईस्वी सन् १९३६ से १९४३ ईस्वी सन् तक ५. प्रयोगवादी युग : ईस्वी सन् १९४३ से १९४८ ईस्वी सन् तक ६. स्वातन्त्र्योत्तर युग : ईस्वी सन् १९४८ से अद्य तक मैं यहाँ प्रत्येक युग का विशिष्ट ढंग से विवेचन न करते हुए अत्यन्त संक्षिप्त निरूपण करूँगा । अर्थात् केवल विशेषताओं का ही उल्लेख करूँगा । वह भी इस कारण उल्लिखित करना आवश्यक समझता हूँ कि उन सबका 'मूकमाटी' में किस प्रकार समाहार हुआ है, ज्ञात हो सके। १. भारतेन्दु युग : भारतेन्दु युग के काव्य में राष्ट्रीयता की भावना विकसित हुई है । सामाजिकता की भावना को इस समय प्रमुख स्थान दिया गया। नारी-शिक्षा, अस्पृश्यता, सामाजिक कुरीतियाँ आदि पर कविताएँ रची गईं। कविता में नवीनता एवं प्राचीनता का अद्भुत समन्वय दृष्टिगत होता है । प्रकृति-चित्रण आलम्बन रूप में अधिक हुआ है। हास्य-व्यंग्य के भी रचनाओं में दर्शन होते हैं । अतीत का गौरव-गान राष्ट्रीयता को ध्यान में रखकर किया गया है। इस समय से गद्य का प्रचलन भी विशेष रूप में होने लगा था। २. द्विवेदी युग : द्विवेदी युग में देश-प्रेम की भावना विशेष रूप से मुखरित हुई है । धार्मिक-चेतना का विकासात्मक समावेश हुआ । काव्य में इतिवृत्तात्मकता की प्रवृत्ति स्पष्ट होती है। सामाजिक-चेतना का विकसित स्वरूप दृष्टिगत होता है । कुरीतियों को समाप्त करने की आवाज उठाई। इस समय गद्य का विकास विशेष रूप से हुआ और आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली को व्याकरण सम्मत बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। प्रकृति का विविध रूपों में चित्रण हुआ। द्विवेदीयुगीन काव्य की सर्वश्रेष्ठ विशेषता यह है कि वह नीतिपरक एवं आदर्शवादी है। ३. छायावादी युग : छायावादी काव्य में सौन्दर्य-चेतना का पक्ष नारी-सौन्दर्य एवं प्रकृति-सौन्दर्य- दोनों रूपों में प्रकट हुआ है । इस समय प्रेम की सूक्ष्म अभिव्यक्ति हुई है । इस समय आत्मनिष्ठता के साथ वैयक्तिकता उभर कर सामने आई है। काव्य में रहस्य भावना व्यक्त हुई है। काव्य में आत्म-वेदना, पीड़ा, करुणा आदि का स्वर मुखरित हुआ है। नारी-सम्मान की भावना का विकास हुआ है । इस समय की श्रेष्ठ विशेषता - मानवतावादी धारणा का विकास, मानवीय पहलुओं के साथ राष्ट्र-प्रेम की ओर विशेष उन्मुख हुआ । प्रकृति का मानवीकरण प्रकृति-चित्रण के साथ हुआ है एवं काव्य-कल्पना का प्रचुर रूप में दर्शन होता है। ४. प्रगतिवादी युग : प्रगतिवादी युग के काव्य में शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने की प्रवृत्ति दृष्टिगत होती है । इसी के साथ रूढ़ियों का विरोध, ईश्वर की सत्ता, आत्मा, धर्म के प्रति विद्रोह की भावना प्रकट करना आदि दृष्टिगत होता है । सबका जीवन समान करने की बात निरूपित की गई है । शोषकों के प्रति घृणा प्रमुख रूप से उभर कर आई है । काव्य में क्रान्ति की भावना, मानवतावादी दृष्टिकोण, नारी स्वातन्त्र्य की बुलन्द आवाज़ मुखरित हुई है। इसी के साथ मुक्त छन्द की ओर कविता तेजी से बढ़ी है। ५. प्रयोगवादी कविता : प्रयोगवाद तक पहुँचते-पहुँचते कविता घोर व्यक्तिवादी हो गई। कविता में अति यथार्थवाद का चित्रण प्रारम्भ हो गया जो नग्न यथार्थ तक पहुँच गया । इसी के साथ अति बौद्धिकता के भी दर्शन होते हैं। काव्य में व्यंग्य की प्रवृत्ति अधिक मुखर होकर सामने आई है । इन पक्षों के साथ इस समय उपमानों में नवीनता, विषयों में नवीनता तथा शैली में नवीनता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। यहाँ तक आते-आते साहित्य का क्रम अपने पूर्ण विकास को निरूपित करने लगा तथा राष्ट्र ने भी अपनी नई
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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