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'मूकमाटी' : चिन्तन एवं अनुचिन्तन
डॉ. घनश्याम व्यास
जीवन में कर्म की स्थिति महत्त्वपूर्ण एवं उच्च होती है। मानव का कर्म के प्रति आस्था का होना अत्यधिक आवश्यक है। आस्था के साथ मानव विचार करने की ओर अग्रसर हुआ था। मानव ने जिस समय से विचार करना प्रारम्भ कर दिया था और वाणी शब्दों की लहरों का निर्माण करते हुए सरिता के सदृश प्रवाहित होने लगी थी, उस समय से काव्य सृजन का क्रम प्रारम्भ हो गया था । इसी के साथ जीवन में आस्था और अनास्था का क्रम भी प्रारम्भ हो गया था । काव्य मानव-जीवन के इस पक्ष हल करने की ही ओर अग्रसर होता रहा है। परिणामत: जीवन अपने मूल में अस्तित्व की समन्वयवादी स्थिति को ग्रहण करता हुआ अपने पथ की ओर निरन्तर अग्रसर है। इस क्रम की अभिव्यक्ति का समयगत निदर्शन काव्य में कई बार दृष्टिगत होता है और कई बार समन्वित होता है । इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा न करते हुए यह कह देना ही समुचित समझता हूँ कि काव्य और मानव या व्यक्ति या मनुष्य एक-दूसरे के पूरक हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि मानव ने जब अपना अस्तित्व समझना प्रारम्भ कर दिया था, उसी समय से ही वाणी के माध्यम से शब्द क्रमगत रूप में निरूपित होने लगे थे । तदनन्तर इन्हीं शब्दों ने विशिष्ट क्रमान्तर्गत काव्य का स्वरूप धारण किया। इसी के सम्बन्ध में मैं यहाँ विचार करने के लिए तत्पर हूँ ।
हिन्दी साहित्य का विकास-क्रम विद्वानों ने दसवीं शताब्दी से माना है। कुछ विद्वानों ने आठवीं शताब्दी से माना है। मैं इस विवाद में नहीं पड़ता और सीधा आधुनिक काल की ओर अग्रसर होता हूँ । विवेच्य कृति का सम्बन्ध भी आधुनिक काल से ही है । इसमें सन्देह नहीं कि काव्य लेखन दो प्रकार से होता है - गद्य और पद्य में । प्रारम्भ में काव्य पद्य में ही लिखा जाता था । गद्य का प्रचलन कालान्तर में हुआ है। हिन्दी के विकास क्रम की ओर ध्यान देने पर ज्ञात हो जाता है कि रीतिकाल तक काव्य पद्य में ही लिखा गया है। छुट-पुट लेखन गद्य में हुआ होगा । इसका परिणाम यह हुआ कि सामान्य जन पद्य में लिखे जाने वाले साहित्य को काव्य के नाम से समझने लगे और गद्य में लिखे साहित्य को काव्य कहने में हिचकते हैं । यह भी एक विडम्बना है। काव्य को एक शैली तक ही बाँधने का कार्य किया है । वास्तव में साहित्य की समस्त विधाएँ काव्य के अन्तर्गत ही आती हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि गद्य में लिखा जाने वाला साहित्य, यथा - कहानी, निबन्ध, उपन्यास आदि सभी काव्यान्तर्गत ही है ।
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आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास क्रम अपने आप में महत्त्वपूर्ण है । इसी क्रम में आचार्य विद्यासागर की कृति 'मूकमाटी' भी आती है। आचार्यप्रवर ने काव्य के लिए जो विषय चुना है वह अपने आप में श्रेष्ठ एवं अनुपम है । मूकमाटी' पर विचार करने के पूर्व आधुनिक हिन्दी साहित्य में 'पद्य - साहित्य का विकास क्रम' की ओर अग्रसर होता हूँ । तदनन्तर 'मूकमाटी' के अनुचिन्तन की ओर बढूँगा ।
निकाल के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक विवेचन न करते हुए संक्षिप्त निरूपण ही करूँगा । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक काल का प्रारम्भ विक्रम संवत् १९०० से माना है, जिसे ईस्वी सन् १८५० के करीब मान सकते हैं। वैसे दोनों के कालक्रम में ५७ वर्षों का अन्तर है । आधुनिक काल ने तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर ही अपना विकास किया है । तदनुरूप साहित्यकारों के साहित्य का विकास हुआ और साहित्यकारों ने तदनुरूप विकास भी किया है । आधुनिक काल की एक विशेषता यह भी हमारे समक्ष स्पष्ट होती है कि प्रारम्भ में लेखकों के आधार पर नाम हैं और प्रवृत्ति के आधार पर नाम हैं। विद्वानों ने विकास क्रम को निम्नत: निरूपित किया है : १. भारतेन्दु युग : ईस्वी सन् १८५० से १९०० ईस्वी सन् तक