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________________ 68 :: मूकमाटी-मीमांसा झंझावात के प्रकोप का वहन । शुद्धता व नैतिकता के बल पर जीवन में सार्थकता लाभ करने के महदुद्देश्य से निकल पड़े कच्चे कुम्भ का मानों समस्त प्रकृति-तत्त्व ही बैरी हो उठा – रत्नाकर पयोधि, उन्मुक्त आकाश, मेघ तथा वायु सभी तत्त्व । परन्तु अथ की इति भी होती है और वह हुई। कुम्भकार ने देखा कुम्भ सूख गया है। उसने सभी प्राकृतिक लीलाओं को सहन कर के अपनी सामर्थ्य सिद्ध कर दी है । अब उसने कुम्भ को अवा में पकने के लिए रखा । बबूल, शीशम आदि की सूखी लकड़ियों से भरे अवा में उन कच्चे सूखे कुम्भों को रखकर अवा का मुख राख-मिट्टी से भरकर उसमें अग्नि प्रज्वलित कर दी गई । घुटन, फिर धुआँ और फिर चटपटाती अग्नि । अग्नि का भी अपना एक स्वाद, एक स्पर्श, एक गन्ध और एक ध्वनि है, यह अनुभव अग्नि के बीच बैठे, अवा में पकते उस कुम्भ को हुआ । साधना और निष्ठापूर्वक उस अग्नि का भक्षण, अग्नि तपन की अग्नि परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर कुम्भ एक परिपक्व, सुचिक्कण, सुडौल, सुन्दर, उपयोगी कुम्भ हो कर बाहर निकला । इस कुम्भ का रूप सुदर्शन, वर्ण कृष्ण श्याम, उसकी ग्रीवा पर हैं ९ और ९९ शुभ संख्याएँ उकेरित, सम्पूर्ण गात सुन्दर चित्रों से मण्डित व अंग-अंग संगीत की ध्वनियों से आपूरित । स्थान-स्थान पर कंकर से बजाने पर 'सा रे ग म प ध नि' आदि संगीत-सरगम के स्वर तथा धा-धिन्' आदि मृदंग के घोष उसमें से टनटनाते थे। यहाँ कुम्भ का व्यक्तित्व-निर्माण पूरा हुआ, उसके शिल्पी कुम्भकार का कार्य पूर्ण हुआ, उसकी कला की सफलता सिद्ध हुई। पर अभी कुम्भ की सार्थकता, उपयोगिता की परीक्षा शेष है । वह भी शीघ्र ही सम्पन्न हो जाती है । नगर के सेठ को स्वप्न में भिक्षार्थी महासन्त को आहार देने का आदेश प्राप्त होता है । तदनुसार वह तैयारियाँ करने में जुट जाता है । मिट्टी का कुम्भ मँगवाता है और उस का सेवक इस परिपक्व सुन्दर, सुसज्जित कुम्भ को सेठ की सेवा के लिए ले आता है । कुम्भकार ने इसका कोई विक्रय मूल्य नहीं लिया, क्योंकि यह साधु-सेवा के निमित्त जा रहा था। ____ नगर भर के गृहस्थों के प्रांगण में मुनि के आहार की तैयारियाँ हैं । मुनिवर आँगन से आँगन लाँघते चले आए। उनकी अंजलि आहार-स्वीकृति के लिए खुली, सेठ के घर में जल से परिपूर्ण माटी कुम्भ के सम्मुख । स्वर्ण कलश, रजत कलश, पीतल के पात्र, स्फटिक की झारियाँ आदि सब उपकरण दुग्ध, क्षीर रस, अनार रस आदि विभिन्न आहारों से भरे हुए, दाताओं के हाथों में पात्र अर्थात् आहार लेने के इच्छुक मुनि की प्रतीक्षा में। माटी का कुम्भ भी जल से परिपूर्ण उसी सेवा में उद्यत । कुम्भ में भरे प्रासुक जल से मुनि ने आहार स्वीकार किया। सपरिवार सेठ ने विधिपूर्वक मुनि को आहार कराया। तत्पश्चात् मुनि ने उपदेश दिया और सपरिवार सेठ उन्हें उनके विश्राम-स्थल तक पहुँचा कर आया। सेठ ने सपरिवार पन्द्रह दिवस के लिए धातु के पात्रों के स्थान पर मात्र माटी के बर्तनों में खाने-पीने का व्रत लिया। धातु पात्रों ने इसमें अपमान-बोध किया। उस भाव के अन्तर्गत माटी कुम्भ को, सेठ को, मुनिवर को बुरा-भला कहा । उन पर अहंकारी, असमाजवादी, असमदर्शी आदि होने के आरोप लगाए । सेठ के व सेठ की सम्पदा के विरुद्ध विद्रोह तूल पकड़ता गया । मच्छर एवं मत्कुण जैसे परोपजीवी जीवों ने भी सेठ पर कृपण, धनसंग्रही, अनुदार होने का दोष लगाया और उन सबके सरदार, सर्वाधिक आहत, अपमानित स्वर्ण कलश ने सेठ को पाठ पढ़ाने के लिए व समुचित रूप से दण्डित करने के लिए आतंकवादी दल को गुप्त निमन्त्रण दे दिया। समाज के द्वारा अवमानित, अनादृत होने की भावनादुर्भावना के शिकार युवक आतंकवादी, सभी के सभी सुदृढ़ डीलडौल व घनी मूंछों के स्वामी व प्राण लेने-देने पर हरदम उतारू युवकों का दल वहाँ आ पहुँचा । परन्तु उस दल के आमन्त्रकों में परस्पर फूट पड़ चुकी थी, किन्हीं बिन्दुओं पर गहरा मतभेद था और विरोधी मतधारिणी स्फटिक की झारी ने चुपचाप यह सूचना कुम्भ को दे दी। विवेकी, सुविचारी, कर्मठ कुम्भ ने अविलम्ब सेठ को सपरिवार घर त्यागने का परामर्श दिया । परामर्श मान लिया गया । कुम्भ के मार्गनिर्देशन में उस परिवार ने घर छोड़ दिया। लगातार यात्रा करते-करते वन में पहुँच कर सुरक्षित स्थान जान कर वहाँ डेरा जमाया । तभी मृगराज द्वारा आतंकित हाथियों का एक समूह सेठ परिवार के पास आया । उनकी सात्त्विकता को
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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