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मूकमाटी-मीमांसा :: 69
पहचान कर गजमुक्ताएँ उन्हें भेंट की। तभी आतंकवादियों का दल वहाँ पहुँच गया आक्रमण करने, पर गजदल ने पूरे सेठ परिवार को सुरक्षा हेतु अपने घेरे में ले लिया। आक्रामक समूह का कुछ वश नहीं चल रहा था। तभी गजों की ऊँचीऊँची चिंघाड़ों से समस्त वन काँप उठा और नाग उनकी सहायता के निमित्त वहाँ पहुँच गए। सेठ परिवार की निर्दोषता और न्यायसम्मतता को देख कर उन्होंने सेठ के प्रति नागमणियाँ अर्पित की और आतंकवादी दल से जा भिड़े । सारा दल भाग खड़ा हुआ और जंगल में छिप गया। छिप-छिपकर सेठ परिवार की लीला देखता रहा। फिर विवश दल ने क्रोध में भर, कर में काले डोरे से बँधे सात नीबुओं को मन्त्रपूरित कर आकाश की ओर उछाल दिया। परिणामस्वरूप आँधीझंझावात आ गए। क्रमश: आँधी रुकी तो सेठ परिवार ने स्वयं को सरिता तट पर खड़े पाया।
सरिता में पूर-वेग था । नई वर्षा की लाल मिट्टी घुल जाने से पानी का रंग भी लाल हो गया था। वेग बहुत था। पार जाना अनिवार्य था। साधन कोई पास नहीं था। तभी पथप्रदर्शक कुम्भ ने रस्सी अपने गले में बाँधकर पानी में प्रवेश किया और सेठ परिवार को उसका सिरा अपनी कटि में बाँधकर उसके पीछे जल में प्रवेश करने को कहा। ऐसा ही किया गया । दल धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। मार्ग में भयंकर जलचर बाधाएँ पैदा करते गए, भय दिलाते रहे । सामने गहरा भँवर आ गया। आतंकवादी दल भी नौका में बैठकर उनका पीछा कर रहा था। ऐसे में एक मगरमच्छ ने मन्त्रपूरित मुक्ता कुम्भ को दी, जिसके प्रभाव से जल में मार्ग मिल जाता है । आतंकवादी दल का निशाना वह कुम्भ ही था, जिसे वे कंकर मारकर फोड़ देना चाहते थे, जो कि सेठ परिवार को नदी से पार कराने का प्रयत्न कर रहा था । सेठ उस कुम्भ को पानी के भीतर अपने पेट के नीचे छिपाए हुए था । नीचे भयंकर जल, ऊपर भयंकर वर्षा, चारों ओर आतंकवादी शत्रु । पर मगरमच्छ द्वारा दत्त मुक्ता से जल में मार्ग मिला । परन्तु आपदाएँ समाप्त नहीं हुईं । शत्रुओं ने बहुत बड़ा जाल फेंका, जिसमें वह परिवार मत्स्यों के समान फँस जाए। पर तभी तेज हवाएँ चलीं, जिन्होंने जाल को ऊपर ही ऊपर उड़ा दिया । और शत्रुओं की नौका उलटने को हो आई । नौका पर लिखा था 'आतंकवाद की जय' । डूबने को विवश आतंकवादी अब सेठ से सहायता की प्रार्थना करने लगे, क्षमा-याचना करने लगे। सेठ तो क्षमा का आगर था ही, उसने मुक्त हृदय से उनको क्षमादान दिया और शरण देने का वादा किया। फिर वे सभी आक्रमणकारी डूबती नौका में से पानी में छलाँग लगा गए और सेठ परिवार द्वारा सँभाल लिए गए, नौका उलट गई, वे सब बच गए और तट पर जा पहुंचे। सरिता के तट पर उस समय वही कुम्भकार माटी खोदने में व्यस्त । कुम्भ ने उसे प्रणामपूर्वक अपनी सफलता की कथा सुनाई। शिल्पी कुम्भकार ने पास ही विराजित साधु को नमस्कार करने को कहा । साधु ने शाश्वत सुख का आशीर्वाद दिया । आतंकवादी दल ने स्थायी सुख प्राप्ति का रहस्य जानना चाहा तो उन्होंने आचरण की शुद्धता का संकेत किया। आचरण की शुद्धता ही मोक्ष का रहस्य है, यही प्रच्छन्न सन्देश देकर साधुजी फिर मौन होकर तपस्या में लीन हो गए।
'मूकमाटी' महाकाव्य का यह विशाल कथाफलक एक साथ ही सांसारिक एवं संसारातीत है । विशाल प्रकृति के प्रांगण में दोनों जगत निवास कर रहे हैं-चेतन एवं जड। चेतन में मनष्य एवं पश दोनों जगत और फिर र जड़ जगत् पंचभूत-जल, वायु, आकाश, अग्नि और पृथ्वी । स्वर्ण, रजत, पीतल, स्फटिक आदि धातुएँ, मुक्ता, माणिक्य, नीलम आदि बहुमूल्य पदार्थ के पात्र, दुग्ध, इक्षु रस, अनार रस, पायस, तक्र आदि पेय, सरिता, सागर, मेघ, इन्द्रचाप, वर्षा, उपल, आँधी, झंझावात, सूर्य, चन्द्र आदि प्राकृतिक तत्त्व, सूर्योदय, सूर्यास्त, निशा, सूर्यग्रहण आदि प्राकृतिक घटनाएँ तथा अन्य भी जागतिक उपकरण इस महाकाव्य के कथाक्रम के निर्माता हैं। मनुष्य जगत् एवं प्रकृति जगत् में अद्भुत समभाव है । वे परस्पर बातचीत करते हैं, व्यवहार करते हैं और क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं। मनुष्येतर जगत् जड़ हो या चेतन, सभी मानवीकृत रूप में मनोवैज्ञानिक स्तर पर व्यवहार करते हैं । सबकी आधारभूत माटी, जो मूक माटी के रूप में महाकाव्य का प्रधान पात्र ही नहीं अपितु मुख्य विषय है, निर्जीव मूक माटी में एक इच्छा है-सार्थक होने की