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________________ 'मूकमाटी' का महाकाव्यत्व प्रा. माणिक लाल बोरा पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा रचित 'मूकमाटी' रचना के मुखपृष्ठ पर ही शीर्षक के नीचे 'महाकाव्य ' लिखा होने से रचना के काव्य भेद का निर्देश किया गया । इस शब्द को लेकर आलोचक - वृन्द में मतान्तर की सम्भावना स्पष्ट दीख पड़ती है। रचना के 'प्रस्तवन' कार श्री लक्ष्मीचन्द्रजी जैन ने इस रचना को, महाकाव्य कहें या खण्डकाव्य या मात्र काव्य ? – यह आशंका भरा प्रश्न खड़ा किया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट लिखा है कि परम्परागत महाकाव्य के चौखटे में जड़ना सम्भव नहीं है । रचना का विस्तृत विस्तार तथा प्रारम्भिक प्राकृतिक परिदृश्य का ज़िक्र कर सिर्फ़ इतना ही उल्लेख किया है कि 'यह महाकाव्य की सीमाओं को छूता है ।' अन्तिम पंक्तियों में उन्होंने इसे 'आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र' कहा है, महाकाव्य नहीं । अतः इस रचना को क्या कहें, यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है। मेरे मन में भी एक और प्रश्न उठता है कि यदि यह रचना आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र है, तो फिर यह 'आधुनिक व्यशास्त्र का अभिनव महाकाव्य' क्यों नहीं हो सकती ? मेरे मन में इस रचना के महाकाव्यत्व के बारे में कोई आशंका नहीं है । इस लेख में मैंने इस रचना के महाकाव्यत्व को सिद्ध करने का प्रयास किया है। परम्परागत महाकाव्य का स्वरूप और 'मूकमाटी' संस्कृत भाषा के महान् पण्डित एवं आचार्यों ने पूर्वकालीन तथा समकालीन कवियों की काव्य रचनाओं का निरीक्षण-परीक्षण करके काव्यशास्त्र की जो रचना की है, उसमें काव्य-भेदों के विवेचन में महाकाव्य के स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। महाकाव्य की रचना के लिए विशिष्ट नियमों की चौखट का निर्माण कर उसका स्वरूप निर्धारित कर दिया है । महाकाव्य के लक्षणों का विस्तारपूर्वक वर्णन करके उसे विशिष्ट मर्यादा में जकड़ दिया है। काव्यशास्त्र के नियमों, लक्षणों के अनुसार महाकाव्य की कथा लोकप्रसिद्ध, लोकविश्रुत हो और उसका नायक उच्च कुलोत्पन्न तथा राजवंश से सम्बन्धित धीरोदात्त महापुरुष हो । कथा में नायक के सम्पूर्ण जीवन का लेखाजोखा हो । आधिकारिकी कथा के साथ ही अनेक प्रासंगिक कथाएँ, जो मुख्य कथा को अग्रसर करती हों, आवश्यक मानी गई हैं । कथा में सहायक तथा निरोधक अनेक पात्र, चरित्र हों, जो नायक के जीवन चरित्र को उजागर कर उसकी लोकोत्तरता पर प्रकाश डालने में सहायक हों। रचनाक्रम की दृष्टि से भी नियम निर्धारित किए गए हैं। महाकाव्य के प्रारम्भ में क्रमश: मंगलाचरण, देवी-देवताओं की वन्दना - - स्तुति, गुरुजनों की वन्दना एवं आशीर्वाद की प्रार्थना, सज्जन-प्रशंसा और दुर्जन- निन्दा इत्यादि का होना आवश्यक बताया गया है । महत्त्वपूर्ण नियम भी बताया गया है कि महाकाव्य में कम से कम आठ सर्ग हों । महाकाव्य के उपर्युक्त जो महत्त्वपूर्ण लक्षण बताए गए हैं, उनमें से एक भी लक्षण 'मूकमाटी' काव्य में है ही नहीं । न मंगलाचरण है, न देवी-देवताओं की स्तुति; न गुरुवन्दना है, न सज्जन-प्रशंसा । कथा है तो एक अति सामान्य, पद-दलित, नगण्य माटी की । इसी माटी को अगर नायिका मान लें तो नायक है उससे बना कुम्भ । कुम्भकार या शिल्पी निमित्त मात्र गौण पात्र है, उसे नायक नहीं माना जाएगा। विशेष बात यह है कि माटी, कुम्भ या कुम्भकार को नायकनायिका मानना लौकिक अर्थ में घटित नहीं होता । आधिकारिक / मुख्य कथा का विस्तार भी बहुत बड़ा नहीं है, बहुत छोटी परिधि है उसकी। कुम्भकार माटी खोदकर घर ले जाता है, छानकर तथा पानी डालकर उसे रौंदता है, चक्र पर लोंदा रखकर कुम्भ बनाता है, अवा में
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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