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मूकमाटी-मीमांसा :: 39
विद्यासागरजी ने जैन दर्शन को भौतिकता से सन्तप्त मानवता के कल्याण का एकमात्र मार्ग बताया है।
'मूकमाटी' की अनन्य विशिष्टता- जिसकी ओर सभी का ध्यान जाता है-है, उसकी प्रासंगिकता। सामान्यतया यह धारणा व्यक्त की जाती है कि जैन मुनि निस्पृह और विरक्त होते हैं और समाज की समस्याओं से उनकी कोई सम्पृक्ति नहीं होती। आचार्यश्री विद्यासागर के इस महाकाव्य में इस धारणा का पंक्ति-पंक्ति में निषेध है । वे जिस समाज में रहते हैं और समय के जिस दौर से गुज़र रहे हैं, उसकी समस्याओं के प्रति वे कितने सजग हैं, इसका प्रमाण हमें 'मूकमाटी' के अनेक प्रसंगों में उपलब्ध होता है । आतंकवाद की नृशंस भयावहता ने हमारे राष्ट्र को जितना आशंकित
और त्रस्त कर रखा है, कवि उसकी जड़ों तक ही नहीं जाता, उसके समाधान के प्रति भी सचेष्ट है । आतंकवाद के कारणों की व्याख्या करते हुए कवि का कथन है :
"यह बात निश्चित है कि/मान को टीस पहुँचने से ही, आतंकवाद का अवतार होता है ।/अति-पोषण या अति-शोषण का भी यही परिणाम होता है,/तब/जीवन का लक्ष्य बनता है, शोध नहीं,
बदले का भाव "प्रतिशोध !" (पृ. ४१८) कवि राजनीति में नित नए-नए रूपों में और नए-नए कारणों से प्रकट होने वाले असन्तुष्ट दलों की ओर भी दृष्टिपात करता है । असन्तुष्ट दलों का अस्तित्व हमारे देश की राजनीति में आज एक व्यापक और चिन्तनीय सचाई है :
"बड़ी समस्या आ खड़ी हुई, कि/अपने में ही एक और असन्तुष्ट-दल का निर्माण हुआ है ।/लिये-निर्णय को नकारा है उसने अन्याय-असभ्यता कहा है इसे,/अपने सहयोग-समर्थन को
स्वीकृति नहीं दी है।" (पृ. ४१९) देश के हित के लिए बहुप्रचलित समाजवाद पर भी कवि व्यंग्य करने से नहीं चूकता :
"आस्था कहाँ है समाजवाद में तुम्हारी ?
सबसे आगे मैं /समाज बाद में !" (पृ. ४६१) समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता से भी कवि विचलित है । वह धन की तुलना में जन को महत्त्व देता है और चोरी जैसे अ-सामाजिक कृत्य का मूल कारण धन के असन्तुलित वितरण में देखता है :
“अब धन-संग्रह नहीं,/जन-संग्रह करो !/और/लोभ के वशीभूत हो अंधाधुन्ध संकलित का/समुचित वितरण करो/अन्यथा,/धनहीनों में चोरी के भाव जागते हैं, जागे हैं।/चोरी मत करो, चोरी मत करो यह कहना केवल/धर्म का नाटक है/उपरिल सभ्यता"उपचार !
चोर इतने पापी नहीं होते/जितने कि/चोरों को पैदा करने वाले।" (पृ.४६७-४६८) 'मूकमाटी' का कवि विदेह होकर भी संसार से विरक्त नहीं है । वह जीवन के उदात्त मूल्यों के प्रति समर्पित है। वह समाज में एक समतापूर्ण समाज की स्थापना के लिए कृत-संकल्प है। मनुष्य से एक दर्जा नीचे रहने का दर्द क्या होता है, कवि उससे संवेदित है और अर्थ, आतंक, अन्याय और असहिष्णुता से सन्तप्त सामान्यजन के पक्ष में खड़ा