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________________ 'मूकमाटी' : 'कामायनी' के बाद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण काव्योपलब्धि डॉ. कान्ति कुमार जैन हिन्दी में एकार्थ काव्य की विवक्षा सुनिश्चित एवं सुनिर्धारित नहीं है । अपभ्रंश में जैन कवियों द्वारा व्यक्ति के जन्म से लेकर कैवल्य प्राप्ति तक की कथा का आख्यान करने वाले 'नागकुमार चरित' और 'यशोधर चरित' एकार्थ काव्य के श्रेष्ठ निदर्शन माने जाते हैं। मध्यकालीन काव्य के इतिहास में जिसे समासोक्ति कहा गया, किंचित् अर्थान्तरण के साथ उसे ही आधुनिक भावबोध की आवश्यकतानुसार एकार्थ काव्य की संज्ञा से अभिहित किया गया है। हिन्दी के स्वच्छन्दतावादी काव्य की महत्तम कृति 'कामायनी' को जब अनेक समीक्षकों ने महाकाव्य के लक्षणों की शास्त्रीयता से विरहित देखा तो उसे उन्होंने रुद्रट के अर्थ में महाकाव्य मानने में संकोच किया किन्तु यह भी सच है कि अपनी 'कोमलता में बल खाती हुई' इस रचना को नए युग का पहिला महाकाव्य कहकर उसे छायावाद की महत्तम कृति का शिखर सम्मान देना छायावाद के समीक्षकों को अपना दायित्व जान पड़ा। इन दोनों स्थितियों का समन्वय करने वाले कुछ ऐसे परम्परावादी समीक्षक भी थे जो शास्त्रीयता से पराङ्मुख भी नहीं होना चाहते थे और 'कामायनी' की अवमानना का आरोप भी वहन करने को प्रस्तुत नहीं थे। परम्परा और आधनिकता के समन्वय के इस उपक्रम में डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जैसे आलोचकों को एकार्थ काव्य की नई विधा गढ़नी पड़ी और अपने नामराशि आचार्य साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ की एकार्थ विषयक स्थापनाओं की नई व्याख्या करने को उद्यत होना पड़ा। उनकी दृष्टि में एकार्थ काव्य की विधा में लिखित रचनाएँ महाकाव्य के औदात्त्य से तो मण्डित होती हैं किन्तु कथा की विरलता के कारण महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षणों से सम्पन्न नहीं होतीं। एकार्थ काव्य में समसामयिक जीवन की गहन आधारभूत समस्याओं का नितान्त प्रासंगिक समाधान होता है और वह अपने महत् जीवन-दर्शन के कारण यदि एक ओर दर्शन की सीमारेखा का संस्पर्श करता है तो दूसरी ओर अपने उत्कृष्ट काव्य-संवेदना के कारण किसी भी महाकाव्य का प्रतिवेशी होता है । कवि की कारयित्री प्रतिभा का ऐसे काव्यों में प्रभूत साक्ष्य मिलता है, उसकी विचार शक्ति स्थापित जीवन मूल्यों को नितान्त नए प्रसंगों में पुनर्व्याख्यायित करती है, शिल्प का ऐसा जीवन्त उदाहरण वह अपने ऐसे काव्य में प्रस्तुत करता है जो उसके व्यक्तित्व का ऐकान्तिक प्रतिफलन होता है और भाषा का ऐसा संयोजन करने में वह सफल होता है जो भाषा या विभाषा की क्षमताओं का विस्तार करने वाला होता है। डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इन्हीं आधारों पर कामायनी' को आधुनिक युग में हिन्दी का प्रथम एकार्थ काव्य कहा था। जायसी के 'पदमावत' के उपरान्त यह परम्परा अपनी संश्लिष्टता, अपनी कलात्मकता, अपने व्यापक जीवन सरोकारों के कारण सरस्वती के समान अन्त:सलिला ही बनी रही। 'कामायनी' कार ने उसे पुन: प्रत्यक्ष करने का प्रयास किया किन्तु छायावाद के उपरान्त फिर किसी काव्य में ऐसी भास्वर जीवनानुभूति एवं कलामयता के दर्शन नहीं हुए। 'मूकमाटी' के रूप में एकार्थ काव्य की इस विरल किन्तु श्रेष्ठ परम्परा का विकास हिन्दी काव्य की एक महत्तम उपलब्धि है। 'कामायनी' यदि स्वतन्त्रतापूर्व भारत की सांस्कृतिक चिन्ताओं का अद्वितीय प्रयास है तो 'मूकमाटी' स्वतन्त्रता परवर्ती भारतीय जीवन के आत्म-मन्थन का विराट् काव्यात्मक उपक्रम । दोनों का उद्गम भारतीय दर्शन में है, दोनों का लक्ष्य आधुनिक जीवन की विषमताओं का समाधान है । दर्शन अथवा शिल्प के स्तर पर दोनों ही किसी इतर प्रभाव को स्वीकार नहीं करते। भारतीय अस्मिता के समग्र उद्घाटन के लिए शैव जीवन-दर्शन एवं जैन जीवनदर्शन पर आधारित 'कामायनी' और 'मूकमाटी' बीसवीं शताब्दी के हिन्दी काव्य की महान् उपलब्धियाँ हैं । जयशंकर प्रसाद ने समरसता के आधार पर आधुनिक जीवन की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया तो आचार्य
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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