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________________ 34 :: मूकमाटी-मीमांसा क्रियाकलापों में उस चेतना को समेटे हुए है । वहाँ संवेदनात्मकता प्रतिबिम्बित होती है, सौन्दर्यानुभूति का संस्पर्शन होता है और सामने खड़ी हो जाती हैं जीवन की वे वास्तविकताएँ, जो समन्वित और संशोधित मार्जन की अपेक्षा करती हैं। वहाँ आत्मसंघर्ष का विवेचन व विश्लेषण है, कलात्मक सौन्दर्य का परिपाक है, गहरी सामाजिक दृष्टि की अर्थवत्ता से संयोजन है । इसलिए काव्य-सृजन में और उसके प्रतीकों व बिम्बों में मौलिकता, प्रामाणिकता और गहन संवेदना भरी हुई है । इसे हम एक सम्यग्दृष्टि सम्पन्न श्रमण की जटिल जीवन्त प्रक्रिया का जीवन दस्तावेज़ भी कह सकते हैं, जहाँ जीवन, जगत् और काव्य की समन्वित त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है और साधारणीकरण का जीता-जागता रस छलक रहा है। 'मूकमाटी' में आचार्यश्री ने जैन दर्शन को सृजनात्मक स्वर देने का सफल प्रयत्न किया है। उनकी सृजनप्रक्रिया बाह्य यथार्थ की आभ्यन्तरीकरण की प्रक्रिया है जो स्वानुभव और स्वानुभूतिजन्य चिन्तन पर आधारित है। कवि ने युग-जीवन के वैषम्य को देखा-समझा-परखा है, नैतिक संकट की उसे ज़बर्दस्त अनुभूति हुई है। इसलिए उसकी सृजनशील प्रतिभा से 'मूकमाटी' जैसा प्रतीकात्मक, रूपक, दार्शनिक महाकाव्य का सृजन हो सका है। बिम्ब-विधान काव्य-बिम्ब एक प्रकार से शब्द-चित्र हैं जो भावुकता, बौद्धिकता अथवा ऐन्द्रियता से सम्बद्ध होते हैं। उनसे अनुभूति में तीव्रता आती है और काव्य प्रभावशाली बन जाता है । 'मूकमाटी' के प्रारम्भ में ही प्रकृति चित्रण में अचेतन पर चेतन क्रियाओं का आरोपण कर बिम्बों का निर्माण बड़े प्रभावक ढंग से हुआ है। प्राकृतिक पदार्थ ही बिम्ब-विधान की सामग्री का मुख्य स्रोत है जिसका उपयोग कवि ने बखूबी किया है । भानु, धूल, आभा, उषा, कुमुदिनी, सरिता, धरती, भूमण्डल, ओला वृष्टि, पर्वत आदि द्वारा प्राकृतिक सौन्दर्य को अच्छा विस्तार मिला है । मूर्त प्रस्तुत के लिए अमूर्त अप्रस्तुत, अमूर्त प्रस्तुत के लिए मूर्त प्रस्तुत, अमूर्त प्रस्तुत के लिए अमूर्त अप्रस्तुत तथा मूर्तामूर्त रूप अप्रस्तुतों का विधान होने से बिम्बात्मकता और अधिक प्रभावक बन जाती है। संज्ञा और क्रिया में विशेषण लगाकर और विशेषणविपर्यय पद्धति को आधार लेकर भी बिम्ब-विधान किया गया है। प्रतीक-विधान बिम्ब-विधान के काफी निकट दिखाई देता है, पर सूक्ष्मता से विचार करने पर उनके बीच भेद स्पष्ट हो जाता है । प्रतीक में उपमा मूलक अलंकारों (उपमा, रूपक, अन्योक्ति आदि) से समानता है अवश्य पर अन्तर यह है कि प्रस्तुत या वर्ण्य वस्तु का महत्त्व उपमा मूलक अलंकारों में अक्षुण्ण रहता है जबकि प्रतीक में अप्रस्तुत या प्रतीयमान अर्थ ही मुख्य हो जाता है । बिम्ब अभिधात्मक हो सकते हैं पर प्रतीक नहीं। प्रतीक में बिम्ब की अपेक्षा अभिव्यंजना शक्ति अधिक सशक्त होती है । 'मूकमाटी' के प्रतीक भी गहरी अभिव्यंजना व्यक्त करते हैं । माटी, कुम्भकार, बालटी, मछली आदि सभी पात्र प्रतीक के रूप में कोई न कोई विशेष सन्देश देते हैं। छायावादी, प्रगतिवादी आदि कवियों द्वारा प्रयुक्त प्रतीकों की तुलना के लिए 'मूकमाटी' में कोई विशेष प्रतीक नहीं हैं, क्योंकि उनका कथ्य बिलकुल भिन्न है । कबीर को भी माटी से अधिक स्नेह रहा है। उन्होंने माटी और कुम्हार के बीच एक संवाद स्थापित किया है जो 'मूकमाटी' की पृष्ठभूमि में स्मरणीय है : "माटी कहे कुम्हार से, तू क्यों रूंधे मोय । इक दिन ऐसा आयेगा, मैं सैंधूंगी तोय ॥" अलंकार-विधान अलंकारों का सहज प्रयोग काव्य के कथ्य और सम्प्रेष्य को सरल बना देता है । अनुप्रास, यमक, वक्रोक्ति आदि
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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