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मूकमाटी-मीमांसा :: 33
भारतीय संस्कृति के प्रारम्भिक काल में भी मिलता है। ये प्रतीक सृष्टि के हर वर्ग से धर्म, वस्तु अथवा व्यक्ति के स्वभाव को स्पष्ट करने के लिए लिये गए हैं। छायावादी कवियों ने अधिकांश प्रतीक प्रकृति से ग्रहण किए हैं। उदाहरणतः, पुष्प सुख का और शूल दुःख का प्रतीक है तो तम निराशा और प्रकाश ज्ञान को स्पष्ट करते हैं। इसी तरह निर्झर, वीणा, किरण, इन्द्रधनुष, चाँदनी, बादल आदि क्रमश: आनन्द, हृदय, आशा, कामना, सुख, विषाद आदि के प्रतीक हैं।
वस्तुत: 'मूकमाटी' एक प्रतीक काव्य है जहाँ माटी के माध्यम से व्यक्ति की उपादान शक्ति को अभिव्यंजित किया गया है । माटी ही कुम्भकार आदि के सहयोग से मंगल कलश तक की सर्वोच्च अवस्था में पहुँचती है । पूर्वोक्त सरिता, माँ, कंकर आदि सभी पात्र किसी न किसी भाव के प्रतीक हैं। काव्य का प्रारम्भ हुआ है सरिता तट की माटी रूप माँ के प्रति माटी की अभ्यर्थना से । माँ का महत्त्व समूची स्त्री जाति का महत्त्व है, प्रकृति शिवत्व और सौन्दर्य का प्रतीक है, कूप और सागर संसार के प्रतीक हैं, चक्र जन्म-मरण को व्यक्त करते हैं, धर्म दशलक्षणमय हैं, अवा परीक्षा का प्रतीक है, पुष्प यह व्यंजित करता है कि जिस प्रकार वह कीचड़ से उत्पन्न होने पर भी जल से ऊपर रहता है उसी प्रकार आदर्श जीवन वही है जिसमें नि:स्पृहता हो । स्वप्न की भी यहाँ अपने ढंग से व्याख्या हुई है। सूर्य व चन्द्र, ज्ञान और आशा के प्रतीक हैं, वृक्ष जीवन का प्रतीक है । अरहन्त भगवान् सम्पूर्ण मनोरथों से और केवलज्ञान से पूर्ण हैं अतः पूर्णकलश मंगल का प्रतीक है । वरुण, वायु और सूर्य को भी सम्मिलित रूप में मंगल कलश में प्रस्थापित माना जाता है। आतंकवाद जैसे तत्त्व उपसर्ग के प्रतीक हैं। इन सब प्रतीकों के माध्यम से 'मूकमाटी' में जीवन के समग्र स्वरूप को अभिव्यंजित किया गया है। ___कवि ने वस्तुत: बिम्बों प्रतीकों के माध्यम से पाठक की ज्ञान-पिपासा को और भी कुरेद दिया है, समरसता को जन्म दिया है और जीवन के परम सत्य को सामने खोलकर रख दिया है। उन प्रतीकों में वास्तविकता झाँकती है, शब्द नए-नए मायने पा लेता है, इतिहासबोध गतिशील हो जाता है और सृजनशील व्यक्तित्व की निर्माण-प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है । 'मूकमाटी' के अध्ययन से कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि जैसे आचार्यश्री सांकेतिकता और प्रतीकात्मकता के माध्यम से व्यक्ति को आत्मालोचन की ओर प्रेरित कर रहे हों । आतंकवाद कहीं जीवन के स्वच्छन्द विलास और वैभव की कहानी तो नहीं कह रहा है ? समाजवाद की परिभाषा में जीवन के असमानता और समताविहीन पृष्ठ तो अंकित नहीं हैं ? तथ्य तो यह है कि आधुनिक जीवन की विषमताओं से भरे समाज को आध्यात्मिकता, लोकसेवा और विश्वबन्धुत्व की ओर उन्मुख करना इन प्रतीकों के प्रयोग के पीछे कवि का लक्ष्य रहा है।
निराला से भी आगे बढ़कर कवि ने शब्द-विन्यास को एक नई अर्थवत्ता दी है जिससे उसकी चित्रात्मकता प्रदान करने वाली प्रतिभा का पता चलता है । अज्ञेय की सचेतन शब्द-शिल्पिता से भी कवि की शब्द-शिल्पिता अधिक जानदार है। 'तारसप्तक' के कवियों में दर्शन शब्द के पीछे चलता है जबकि 'मूकमाटी' के कवि में दर्शन शब्द के आगे अपने को प्रस्थापित करता है। समूची कृति में कहीं भी निराशावादिता हावी नहीं हो सकी। कवि की आस्था और आशा जीवन के बदले हुए सुन्दर पड़ाव की ओर दृष्टि जमाए हुए है जहाँ विद्रोही संकल्पनाएँ अन्तिम साँस लेने लगती हैं, कुण्ठाएँ अस्तित्वहीन बन जाती हैं और आध्यात्मिकता सजग हो जाती है। कवि चूँकि समष्टि-सत्य का द्रष्टा है, वह व्यक्ति को त्रासदी से निकालकर नई सम्भावना के क्षितिज पर खड़ा कर देता है । व्यक्ति की प्रकृति पर उसे गहरी आत्मीयता है, द्वन्द्व भरी चेतना को परखने की दृष्टि है, जीवन मूल्यों को ऊष्मा प्रदान करने की क्षमता है, आध्यात्मिक शिखर पर प्रतिष्ठित होने/करने की योग्यता/पात्रता है। इसलिए उसका काव्य नैतिक जागरण का काव्य है, प्रतिक्रियावादी तत्त्वों की वर्जना करने वाला काव्य है, आत्मचेतना को जाग्रत करने वाला काव्य है तथा जीवन के प्रति अटूट-आस्थादर्शन भरा काव्य है।
कवि के 'साहित्य' में सम्पूर्ण जीवन की चेतना और ज्ञान की अभिव्यक्ति होती है। 'मूकमाटी' अपने सारे