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30 :: मूकमाटी-मीमांसा सुसंस्कृत और परिष्कृत हो जाता है। जहाँ यह परिवर्तन नहीं हो पाता वहाँ व्यक्तिवाद, प्रतिस्पर्धा, अर्थसंग्रह, उपनिवेशवाद, कलह, आतंकवाद आदि वस्तुवादी मूल्य मानवीय मूल्यों को आच्छादित कर देते हैं। इन सारे तत्त्वों का सुन्दर विश्लेषण आचार्यश्री ने अपने इस अनोखे दार्शनिक काव्य में किया है। आतंकवाद और धनतन्त्र
__आतंकवाद और धनतन्त्र जब सिर पर बोलने लगते हैं तब गणतन्त्र का उपहास होना शुरू हो जाता है । वहाँ निरपराधी पिट जाते हैं और अपराधी बच जाते हैं (पृ. २७१) । आतंकवाद हिंसा, अधर्म और लूटपाट पर जीता है। वह निष्करुण और क्रूर होता है। जब तक वह रहेगा, धरती शान्तिपूर्वक रह नहीं सकती। कवि की दृष्टि में यह आतंक भले ही राग-द्वेष का रहा हो पर भौतिकता के साये में वह आज के आतंकवाद से कम नहीं है । इसलिए सन्त कवि उसे दूर कर संसार रूपी नदी को पार करने का दृढ़ संकल्प किए बैठे हैं। सन्त कवि आतंकवाद को समाप्त करने का मार्ग बताता है समाजवाद की स्थापना । समाजवाद वह नहीं है जिसमें नारों के अलावा कुछ न हो बल्कि समाजवाद वह है जिसमें प्रशस्त आचार-विचार हो। धन-संग्रह नहीं.जन-संग्रह हो और धनहीनों में उसका समचित वितरण हो. अन्यथा उनमें चोरी करने का भाव जागेगा और आतंकवाद का विस्तार होगा । चोरों की अपेक्षा चोरों को पैदा करने वाले अधिक पापी होते हैं। आज के आतंकवाद पर यह एक मार्मिक टिप्पणी है :
0 “कुल मिलाकर अर्थ यह हुआ कि/प्रचार-प्रसार से दूर
प्रशस्त आचार-विचार वालों का/जीवन ही समाजवाद है। समाजवाद समाजवाद चिल्लाने मात्र से/समाजवादी नहीं बनोगे।” (पृ. ४६१) 0 “अब धन-संग्रह नहीं,/जन-संग्रह करो!/और/लोभ के वशीभूत हो
अंधाधुन्ध संकलित का/समुचित वितरण करो/अन्यथा,
धनहीनों में/चोरी के भाव जागते हैं, जागे हैं।” (पृ. ४६७-४६८) आज आतंकवाद की जैसी स्थिति है वैसी ही आजकल उन तथाकथित भगवानों की है जो स्वयं तो पथ पर चलना नहीं चाहते पर औरों को चलाना चाहते हैं। ऐसे चालाक चालकों की संख्या अनगिनत है । सन्त कवि को उनकी इस आचरण-प्रक्रिया पर आश्चर्य और दुःख है (पृ.१५२)। धनिक भी लगभग उसी श्रेणी में आ जाते हैं। उनके पास रहने से कुछ मिलता नहीं है, मिल भी जाता है तो वह काकतालीय न्याय है :
"अरे, धनिकों का धर्म दमदार होता है,/उनकी कृपा कृपणता पर होती है, उनके मिलन से कुछ मिलता नहीं,/काकतालीय न्याय से/कुछ मिल भी जाय
वह मिलन लवण-मिश्रित होता है/पल में प्यास दुगुनी हो उठती है।" (पृ.३८५) ममतामयी माँ
सन्त कवि बड़े सहृदय और नेक प्रकृति के हैं। उन्हें माँ के प्रति अपार ममता और सम्मान है। धरती उनके लिए सब कुछ है । काव्य का प्रारम्भिक भाग धरती माँ से ही प्रारम्भ होता है । कवि को उस धरती माँ में हृदयवती चेतना का दर्शन हो रहा है । उसके निश्छल विशाल भाल पर आत्मीयता और गम्भीरता दिखाई दे रही है (पृ. ६) । तभी तो वह सन्तान की सुषुप्त शक्ति को जाग्रत करने पर ही अपनी सार्थकता मानती है (पृ. १४८) । शायद इसलिए समूचे नारी वर्ग