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________________ 4 : : मूकमाटी-मीमांसा को निसर्ग करना, यह सृजनशील जीवन का वर्गातीत अपवर्ग है ।' कथानक के इन क्षीण तन्तुओं पर दार्शनिक, सामाजिक एवं नैतिक विचारों, उदात्त मूल्यों और सांस्कृतिक भावनाओं का रूप-रंग चढ़ाकर एक भावात्मक, विचार प्रधान, आध्यात्मिक प्रतीक काव्य का ताना-बाना बुना है । जीवन की नैतिक शिक्षा, आध्यात्मिक विचार, पवित्र तपः पूत जीवन की प्रेरणा से यह काव्य पूर्णतया सम्पन्न है, पर एक प्रबन्ध काव्य की भाँति जीवन्त कथानक और आन्दोलित कर देने वाली भावनाओं तथा जटिल-विषम परिस्थितियों के झकझोरने वाले झंझावात का इसमें अभाव है। रस और भाव व्यंग्य होते हैं, वाच्य नहीं। हमें अमुक से प्रेम है या अमुक को देखकर हँसी आती है या भय लगता है - ऐसे कथनों से शृंगार, हास्य या भयानक रसों की सृष्टि नहीं होती, वे तो परिस्थितियाँ होती हैं, जिनमें डूबकर पात्र सजीव बनता है और भावों की गहरी अनुभूति में डूब जाता है । इस दृष्टि से 'मूकमाटी' को महाकाव्य या प्रबन्ध काव्य नहीं कहा जा सकता। यह एक आध्यात्मिक, प्रतीकात्मक संवाद काव्य है । परम्परागत रूप में प्रबन्ध काव्य न होता हुआ भी 'मूकमाटी' एक विशिष्ट प्रतीक काव्य है। इसमें धरती और उसकी सबसे लघुतम इकाई माटी की महिमा का वर्णन है। माटी के सम्बन्ध में यह कवि का मौन चिन्तन है । इसमें धरती की धारणशीलता, सहनशीलता, क्षमाशीलता और उदारता को उजागर किया गया है। उसी धरती का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश माटी है । इसमें मृदुता है, जिसमें उचित संसर्ग पाकर विविध रूप धारण करने की अनन्त सम्भावनाएँ हैं। उससे कलश, कुम्भ आदि अनेक प्रकार के पात्र बनते हैं तथा उससे खिलौने, विभिन्न आकृतियाँ, विविध मानव और देवमूर्तियाँ बनती हैं और उसी से दीवालें और घर भी बनते हैं तथा पके पात्र और पकी ईंटें निर्माण और सर्जना की असंख्य कल्पनाओं को साकार करते हैं । परन्तु इस सृजनशीलता के अतिरिक्त उसमें अद्भुत उर्वरता है। सभी बीज धरती की माटी में सुरक्षित रहते हैं और जल का संसर्ग पाकर अंकुरित हो जाते हैं। आकाश में जैसे नक्षत्रों का निवास है, वैसे ही धरती की माटी में बीजों का निवास है । गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है : "यथा भूमि सब बीज मय, नखत निवास अकास । रामनाम सब धर्ममय, बरनत तुलसीदास ॥" यह 'राम नाम', ओंकार का ही एक रूप है । 'ओम्' निर्गुण है और राम सगुण हैं । उर्वरता के साथ-साथ माटी में उपचार की भी अद्भुत शक्ति है जिससे मनुष्य नीरोग होता है । इसके अतिरिक्त माटी अविनश्वर है, क्योंकि जड़ वस्तुएँ और चेतन प्राणी सभी अन्ततोगत्वा माटी में मिल जाते हैं, सूखी लकड़ी को दीमक माटी बना देती है, गोबर तथा मृत जीव-जन्तु सभी माटी हो जाते हैं, पर माटी, माटी ही बनी रहती है। सभी का अन्त माटी में ही है । तभी कहते हैं : "माटी कहे कुम्हार सों, तू क्या रौदे मोहि । इक दिन ऐसा आयगा, मैं रौंदूंगी तोहि ॥' कबीर सत्य ही कहते हैं । उसी माटी के गौरव को इस ग्रन्थ में उजागर किया गया है। — इस काव्य ग्रन्थ में केवल दो पात्र प्रमुख रूप से हैं, जो चेतन हैं पर वे बहुत कम बोलते हैं - वे हैं सेठ और शिल्पी । शेष सभी पात्र जड़ हैं और वे सभी खूब बात करते हैं। उन्हीं के माध्यम से जीवन की अनेक उपयोगी बातें और माटी के महत्त्व की विशद व्याख्या इस काव्य में प्रस्तुत की गई है। इस ग्रन्थ को पढ़ने से सोचने-विचारने की निरन्तर प्रेरणा मिलती है । यह एक गम्भीर चिन्तनपरक काव्य है । यद्यपि इसके पढ़ने से सभी बातें स्पष्ट हो जाती हैं, फिर भी हम आगे इस काव्य के कुछ महत्त्वपूर्ण विन्दुओं का उल्लेख कर रहे हैं। सबसे पहले हम प्रतीक प्रयोग को लेते हैं। यों तो पूरा काव्य ही प्रतीक है, क्योंकि मूकमाटी श्रमशील, कार्यनिष्ठ, अपने को निम्न समझने वाले जन समुदाय का प्रतीक है, जो वह सब कुछ सहता जाता है, जो प्राकृतिक रूप से होता रहता है, या फिर जो शासन, प्रशासन और उच्चस्थ श्रीमन्त व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है एवं उसके
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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