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________________ 428 :: मूकमाटी-मीमांसा और/महादेव का आयुध शूल ।/एक में पराग है/सघन राग है जिस का फल संसार है ।/एक में विराग है/अनघ त्याग है जिसका फल भव-पार है।" (पृ. १०१-१०२) ___ फूल से शूल का महत्त्व अधिक है। दूसरे शब्दों में फूल की चाह को शूल की शैया में नित नवविश्रान्ति मिलती है। इसीलिए काव्य का नायक शिल्पी शूल के प्रति कम आस्थावान् नहीं है : "शिल्पी की ऐसी मति-परिणति में/परिवर्तन - गति वांछित है सही दिशा की ओर"!/और/क्षत-विक्षत काँटा वह/पुन: कहता हैशिल्पी कम-से-कम/इस भूल के लिए शूल से क्षमा-याचना तो करे, माँ !" (पृ. १०४-१०५) प्रकृति और पुरुष का मेल अध्यात्म, दर्शन और मानव धर्म के समुच्चय के मूल में है । इन दोनों का उत्कर्ष मानवीय सम्भावनाओं और गहरी रचनात्मक दृष्टि के लिए आवश्यक है । आचार्यश्री के साहित्य में भावपूर्ण चिन्तन, सह-अस्तित्व आदि का निरूपण आत्मालोचन के सन्दर्भ में भी कविता को प्राणवान् बनाता है। प्रेम और आस्था से समन्वित हृदय की स्वाभाविक परिणति शील है । शीलवान् व्यक्ति पद-पद पर प्रभु से यही प्रार्थना करता है : "पदाभिलाषी बन कर/पर पर पद-पात न करूँ,/उत्पात न करूँ कभी भी/किसी जीवन को/पद-दलित नहीं करूँ, हे प्रभो !" (पृ. ११५) माटी और शिल्पी की लीला का रहस्य यह भी है कि शिल्पी मुक्त भाव से नदी की गति की भाँति धरा की उज्ज्वल छवि को निखारता है । बोधिभाव के विस्तार और नानाविध अम्लान मंगल घट को शिल्पी पुण्यनिधि बनाने की चेष्टा करता है। 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं की पूरी उत्तरकथा आचार-विचार, साहित्य और संस्कृति आदि के सन्दर्भ को विशेष अर्थ में प्रकट करती है। कवि ने प्रेम की गम्भीरता में माटी की सर्जनात्मक विश्वसनीयता का मार्मिक निरूपण किया है। इसीलिए संवेदन की तीव्रता धार्मिक अर्थ से पुष्ट दार्शनिक गहनता का आभास देती है । सृजनात्मक अर्थ में आचार्यश्री की प्रातिभ निर्मलता, साधना-शक्ति सृजन के स्तर पर भी अधिक व्यापक, गहन और सूक्ष्म छाप छोड़ती है। साहित्य, समाज और संस्कृति आदि के प्रसंगों पर किसी भी सिरे से विचार करने पर आचार्यश्री के सृजन की सूक्ष्मता पाठक के लिए चुनौती के रूप में खड़ी होती है। माटी का प्रस्थान बिन्दु सघन सांस्कृतिक चेतना से अनुप्राणित अनुभूति का सहज प्रवाह बन जाता है। उससे स्निग्ध पुरुष और प्रकृति प्रतिपल सानन्द, सुखमय श्वास की अनुभूति करती है । सम्पूर्ण रचना में आत्मसंयम का उन्मेष और मन एवं बुद्धि का सात्त्विकीकरण शिल्पी की मनीषा का प्राणपन्थ बनकर, उसकी कृति को अनुराग की आभा से दीप्त कर देता है। इसी का पर्याय है मंगल घट : "चक्र अनेक-विध हुआ करते हैं/संसार का चक्र वह है जो राग-रोष आदि वैभाविक/अध्यवसान का कारण है:/चक्री का चक्र वह है जो भौतिक-जीवन के/अवसान का कारण है, परन्तु कुलाल-चक्र यह, वह सान है/जिस पर जीवन चढ़ कर
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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