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________________ 'मूकमाटी' महाकाव्य : एक समीक्षात्मक अवलोकन प्रो. (डॉ.) आशा गुप्ता परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा रचित महाकाव्य 'मूकमाटी' प्राप्त हुआ। जितना सुन्दर बहिरंग, उससे भी श्रेष्ठ अन्तरंग देखकर हर्ष हुआ, सन्तोष हुआ । चार सौ अठासी पृष्ठ का वृहत्काय ग्रन्थ घर बैठे उपलब्ध हुआ । ग्रन्थियों का विमोचन करने वाला यह सद्ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा के जैनी महात्मा विद्यासागरजी द्वारा रचा गया है, यह देख कर आश्चर्य हुआ। अधुनातन कविता की परिपाटी का वल्कल पहना कर दर्शन, अध्यात्म, सदुपदेश को प्रस्तुत करने का यह एक रूपकमय प्रयास निश्चित ही स्तुत्य है। माटी निर्मित यह देहकुम्भ, हम सभी का है । कबीरदास की इन पंक्तियों से हम लोग परिचित रहे हैं : . "माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रुंधे मोय । एक दिन ऐसा होयगा, मैं सैंधूंगी तोय ॥" 'छिति-जल-पावक-गगन-समीरा' के द्वारा निर्मित देह के साथ हम सभी रह रहे हैं । क्षिति, मिट्टी, पृथ्वी तत्त्व की स्थूलता की बात तो की जाती है, किन्तु उसे इस दृष्टि से देखना कि वही गुरु बनकर उपदेश दे - कर्तृत्वभाव ग्रस्त जीव रूपी कुम्हार को, यह आचार्य विद्यासागरजी जैसे दिव्यदृष्टि सम्पन्न महात्मा के लिए ही सम्भव था। __ मैंने दो बार ग्रन्थ को ध्यान से पढ़ने की चेष्टा की है। नाटकीय संवादों से युक्त प्रसंग बहुत जीवन्त हैं। यह रचना सांसारिक यशकामी लेखक की नहीं है, सन्त की है, अत: इसमें भिन्न प्रकार की विशेषताएँ स्वाभाविक रूप से समाविष्ट जो असाधारण तत्त्व मुझे इस 'मूकमाटी' के लगे, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं : १. इसमें निश्चित रूप से कवि-आचार्य-सन्त-लेखक का आध्यात्मिक उद्देश्य है । काव्य को अध्यात्म का माध्यम बनाया गया है। २. जैन दर्शन के सिद्धान्तों का समायोजन काव्य में बड़े स्वाभाविक रूप से किया गया है। ३. अनेक स्थल कविता की दृष्टि से भी सुन्दर बन पड़े हैं। ४. यथार्थ का खूब अच्छा परिचय लेखक को है, यह अनेक स्थलों पर प्रकट है। यथार्थ पर निस्संकोच प्रहार यत्किंचित् है। ५. अनेक सिद्धान्त वाक्यों, सूत्र वाक्यों से ग्रन्थ धनी है। ६. ग्रन्थ उपदेशात्मक है । उपदेश को संवाद के रूप में, वात्सल्य, प्रेम, मधुर भावनाओं से समावेष्टित कर ___मधुरता के साथ प्रस्तुत किया गया है। ७. उपदेश ग्रन्थ होते हुए भी मनोरंजन के स्थल इसमें हैं। नीरसता नहीं है। ८. सबसे मुख्य बात है इसकी भाषा। लेखक का भाषा पर अधिकार है । वह भाषा से खेलना जानता है । अनेक स्तरों पर यह खेल लम्बा खिंचा है। अनेक स्तरों पर भाषा सम्बन्धी नवीन प्रयोग, नवीन अर्थान्वेषण रोचक हैं तथा नई सूचनाएँ देने वाले हैं। लेखक को शब्द को उलट कर देखने में विशेष प्रकार की रुचि है, और यह रुचि बड़ी विचित्र महिमा - भाषा को प्रकट करने वाली सिद्ध
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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