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________________ 366 :: मूकमाटी-मीमांसा प्रभाव इस महाकाव्य पर है । वैराग्य का इससे अच्छा उदाहरण क्या मिलेगा : "गगन का प्यार कभी / धरा से हो नहीं सकता / मदन का प्यार कभी जरा से हो नहीं सकता; / यह भी एक नियोग है कि / सुजन का प्यार कभी सुरासे हो नहीं सकता । / विधवा को अंग - राग / सुहाता नहीं कभी सधवा को संग-त्याग / सुहाता नहीं कभी, / संसार से विपरीत रीत विरों की ही होती है / भगवाँ को रंग-दाग/ सुहाता नहीं कभी !" (पृ. ३५३ - ३५४) इस महाकाव्य में सभी रसों का बड़ा ही अद्भुत वर्णन है । वीर, हास्य, अद्भुत, शृंगार, बीभत्स, करुणा, वात्सल्य और शान्त रस का भरपूर वर्णन किया गया है । पर अन्त में प्रतिष्ठापित है - शान्त रस । इसीलिए तो उन्होंने कहा : " करुणा - रस उसे माना है, जो / कठिनतम पाषाण को भी / मोम बना देता है, वात्सल्य का बाना है / जघनतम नादान को भी / सोम बना देता है । किन्तु, यह लौकिक / चमत्कार की बात हुई, / शान्त-रस का क्या कहें, संयम-रत धीमान को हो/ 'ओम्' बना देता है।" (पृ. १५९-१६०) 'मूकमाटी' एक ऐसा महाकाव्य है जो प्राचीन साहित्यिक परम्पराओं से बँधा हुआ नहीं है। यह सम्पूर्ण समाज का प्रतिबिम्ब है जिसमें आनन्द का प्रभाव एवं शान्त रस की स्थापना कवि का अन्तिम उद्देश्य है । यह एक ओर जहाँ व्यावहारिक प्रतिमानों से ओतप्रोत काव्य है, वहीं इसमें रूपक के माध्यम से माटी के विभिन्न रूपी पदार्थों की मानवीय प्रतिमानों से तुलना की गई है। यहाँ प्रतीकों के माध्यम से अनेक सामाजिक बातें कह दी गई हैं। इसकी भाषा शैली सामान्य एवं सर्वगम्य है । मुझे विश्वास है, यह महाकाव्य भारत की सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखते हुए वर्तमान परिवेश में आध्यात्मिक चेतना के उन्मेष में पथप्रदर्शक का कार्य करेगा । लोइधर अधखुली कमलिनी डूबते चाँद की चाँदनी को भी नहीं देखती
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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