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________________ 342 :: मूकमाटी-मीमांसा को स्पष्ट करने लग जाता है : "नीर का क्षीर बनना ही / वर्ण-लाभ है, / वरदान है । और / क्षीर का फट जाना ही / वर्ण संकर है/ अभिशाप है इससे यही फलित हुआ, / अलं विस्तरेण !" (पृ. ४९) शिल्पी ने कंकरों को जब उनका वास्तविक स्वरूप बतला दिया तो कंकर रो पड़े और कहने लगे : " ओ मानातीत मार्दव - मूर्ति, / माटी माँ ! / एक मन्त्र दो इसे जिससे कि यह / हीरा बने / और खरा बने कंचन - सा !" (पृ. ५६ ) इस पर माटी ने कंकरों को निम्न प्रकार मार्ग बतलाया : “कंकरों की प्रार्थना सुनकर / माटी की मुस्कान मुखरित हुई संयम की राह चलो / राही बनना ही तो / हीरा बनना है।” (पृ. ५६-५७) इसके पश्चात् शिल्पी कंकरों से रहित माटी को पानी में भिगोने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है। कुएँ में से पानी निकालने के लिए बालटी को रस्सी से बाँध दी है, लेकिन रस्सी में लगी हुई एक गाँठ नहीं खुलती । बहुत प्रयास किया जाता है लेकिन सफलता नहीं मिलती। शिल्पी को दाँतों ने आकर सहयोग देने की प्रार्थना की और कहा : 44 'बात का प्रभाव जब / बल-हीन होता है / हाथ का प्रयोग तब कार्य करता है । / और / हाथ का प्रयोग जब बल -हीन होता है / हथियार का प्रयोग तब / आर्य करता है ।" (पृ. ६०) लेकिन दाँतों से गाँठ नहीं खुली। तब रसना इन्द्रिय ने आकर उसे भला-बुरा कहा और जैसे ही उसने अपनी लार गाँठ पर छोड़ी, वह हिल उठी और फिर दाँतों ने मिलकर उस गाँठ को खोल दिया । गाँठ तो ग्रन्थि का रूप है । जहाँ ग्रन्थि है, वहाँ निश्चय ही हिंसा झलकती है । ग्रन्थि तो हिंसा की सम्पादिका है, क्योंकि जब गाँठ युक्त रस्सी गिर्री पर गिरेगी तो निश्चित रूप से बालटी का सन्तुलन बिगड़ जाएगा । उसका जल उछल कर कुएँ में जा गिरेगा, जिसके कारण बहुत से जीव कुएँ में पीड़ित हो सकते हैं। शिल्पी के शरीर की छाया कुएँ में मछली पर पड़ी। कुएँ में मछली तड़प गई और अपनी दीन स्थिति पर रोने लगी। उसे अन्ध कूप में से निकालने के लिए प्रार्थना करने लगी। ये सब रूपक हैं जिनके सहारे महाकवि ने संसार की यथार्थता का वर्णन किया है। यह जीव भी पता नहीं कितने समय से अन्धकूप में पड़ा हुआ है, जहाँ उसे ज्ञान की एक किरण भी नहीं दिखाई देती । वह अन्धकूप में से निकलने का प्रयत्न करता है और यदि कभी वह ऊपर आ भी जाता है तो अपने अज्ञान के कारण फिर अन्ध कूप में गिर जाता है। आने और गिरने की प्रक्रिया लगी ही रहती है । महाकवि ने इस सर्ग में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का आधुनिक अर्थ, सत्युग और कलियुग का यथार्थ अन्तर, व्याधि- आधि और उपाधि का लक्षण एवं सल्लेखना का जो अर्थ समझाया है, वह निश्चित ही महाकवि की प्रभावक काव्यत्व शक्ति का परिचायक है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का कवि ने नवीनीकरण करते हुए लिखा है : “वसुधैव कुटुम्बकम्”/इसका आधुनिकीकरण हुआ है वसु यानी धन-द्रव्य /धा यानी धारण करना / आज धन ही कुटुम्ब बन गया है / धन ही मुकुट बन गया है जीवन का ।" (पृ. ८२) 66
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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