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________________ भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो / कुम्भकार कहलाता है।” (पृ. २८) उस शिल्पी ने ओंकार (पंच परमेष्ठी) को नमन करके कुदाली से मिट्टी को खोदकर बोरी में भर लिया। कवि ने लिखा है कि कुदाली की मार खाने पर भी बोरी में भरी मिट्टी लज्जावश नवविवाहिता तनूदरा के समान कुछ नहीं बोलती । और बोरी के ऊपर के छेदों में से ही झाँकने लगती है। लेकिन शिल्पी से माटी की वेदना नहीं सही जाती और उसे वह चारुशीले कहकर कुछ पूछ ही लेता है । माटी को अपना इतिहास बताने में प्रसन्नता होती है। माटी की बात कवि के शब्दों में देखें : 1 'अमीरों की नहीं / गरीबों की बात है; कोठी की नहीं / कुटिया की बात है ।" (पृ. ३२) " मूकमाटी-मीमांसा :: 341 शिल्पी बोरी में भरी हुई माटी को गधे की पीठ पर लाद देता है। लेकिन गदहा की पीड़ा को माटी अपनी पीड़ा समझ बैठती है। उसके नेत्र सजल हो जाते हैं। शिल्पी माटी के दया के भावों को समझ लेता है और कह उठता है : " दया का होना ही / जीव-विज्ञान का / सम्यक् परिचय है।” (पृ. ३७) क्योंकि पर की दया से ही स्व की (दया का विलोम रूप करने से ) याद आती है। इन अल्प शब्दों में कवि ने कितनी सच्चाई भर दी है। 'दया' और 'वासना' के भेद को कवि ने कितनी अच्छी तरह समझाया है : " वासना का विलास / मोह है, / दया का विकास / मोक्ष हैएक जीवन को बुरी तरह/जलाती है / भयंकर है, अंगार है ! एक जीवन को पूरी तरह / जिलाती है / शुभंकर है, शृंगार है।" (पृ.३८) शिल्पी अपने घर पहुँचकर गदहे की पीठ से माटी की बोरी को उतार लेता है और फिर चालनी लेकर माटी को छानने लगता है। माटी अलग एवं कंकर अलग हो गए। माटी से बिछुड़ने पर कंकरों को बहुत दुःख होता है और वे शिल्प से अपने वियोगीकरण का कारण पूछ बैठते हैं। साथ ही, अपने और माटी के सम्बन्धों पर विस्तार से साम्यता बतलाते हैं। शिल्पी कह उठता है कि माटी से उसका शिल्प निखर जाता है और कंकरों से वह शिल्प बिखर जाता है : वह शिल्पी फिर कहने लगता है : "मृदु माटी से / लघु जाति से / मेरा यह शिल्प / निखरता है / और खर-काठी से / गुरु जाति से / वह अविलम्ब / बिखरता है ।" (पृ. ४५) " संकर - दोष का / वारण करना था मुझे / सो कंकर - कोषका / वारण किया ।” (पृ. ४६ ) शिल्पी की बात कंकरों से सही नहीं जाती और वे माटी से अपने लम्बे इतिहास पर प्रकाश डालने लगते हैं और वे शिल्पी से उसके आँखों एवं कानों के दोषपूर्ण होने की बात भी पूछ बैठते हैं : "गात की हो या जात की / एक बात है -/ हममें और माटी में समता - सदृशता है/विसदृशता तो दिखती नहीं !" (पृ. ४६ ) फिर शिल्पी और कंकरों में वर्ण संकर की चर्चा चल पड़ती है। शिल्पी क्षीर और नीर, नीर और क्षीर के सम्बन्धों
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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