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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 291 ३१. सं-सार सरकने वाला सम्यक् सरकने वाला। ३२. जल-धि (जड़-धी) समुद्र जड़ बुद्धिवाला ३३. चर-ण (न-रच) पद पूज्य चरण को छोड़ अन्यत्र नहीं जाना, अन्यत्र रुचि नहीं रखना ३४. अपरा-धी दोषी सद्बुद्धि युक्त ३५. समूह समाज समीचीन विचार (ऊह), सदाचारी ३६. श बीजाक्षर रूप कषाय शमन ३७. स बीजाक्षर रूप समता ३८. ष बीजाक्षर रूप पाप-पुण्य निवारक (४) ९, ९९, ६३, ३६३ संख्याओं की विशेषता का निरूपण, अनेक चित्र व प्रतीकों (पशु चित्र, स्वस्तिक आदि प्रतीक) के आध्यात्मिक महत्त्व का निरूपण । (५) अनेक जैन सिद्धान्तों (अहिंसा, अनेकान्त, 'ही' और 'भी' का अन्तर और अपरिग्रह, शाकाहार आदि) का प्रकरणवश मनोवैज्ञानिकत: निरूपण । (६) काव्य की त्रिस्तरीय-अभिधा, लक्षणा और व्यंजनात्मक भाषा और दो प्रकार की अभिव्यक्ति – (१) भावना और अनुभूति भरी तथा (२) तर्कसंगत दार्शनिक मन्तव्यों की अभिव्यक्ति आधुनिक युग की पीढ़ी के लिए आकर्षक है। (७) काव्य में वर्तमान युग की अनेक सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं पर भी कथोपकथनों में आकर्षक रूप से प्रकाश डाला गया है । लेखक ने इनका आदर्श आध्यात्मिक और दार्शनिक समाधान भी दिया है। उदाहरणार्थ जहाँ एक ओर पाणिग्रहण को प्राण-ग्रहण के रूप में बताकर दहेज प्रथा पर चोट की है, वहीं उन्होंने वर्तमान दण्ड व्यवस्था, विलम्बित न्याय व्यवस्था तथा धन वृद्धि को मनमाना तन्त्र बताया है। उन्होंने कार्य एवं वेतन की विषमता को भी अन्याय बताया है। उन्होंने भोगवाद और उपभोक्तावाद पर भी करारी चोट की है। लोकतन्त्र, जनतन्त्र एवं समाजवाद की प्रशंसा की है । उन्होंने आतंकवाद एवं दल-बहुलता को शान्तिहननी बताकर निन्दित ही नहीं, पराजित भी कराया है। उन्होंने स्वतन्त्रता के जन्मसिद्ध अधिकार को स्वीकार करते हुए भी परहित में स्वच्छन्दता को नियन्त्रित करने के लिए कभी-कभी बन्धन को व्यावहारिकत: उपयोगी भी बताया है । पाश्चात्य सभ्यता को आक्रमणशीला एवं एकान्तवादी बताकर अनेकान्त संस्कृति की राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय उपयोगिता निदर्शित की है तथा सभी के कल्याण का स्वर मुखरित किया है, जो 'दयाविसुद्धो धम्मो' का व्यावहारिक स्वरूप है। (८) महाकाव्य में ध्यानकेन्द्री ध्यानी, कोष श्रमण एवं नामधारी श्रमणों को छद्मवेशी बताया है। सच्चे साधु के लक्षणों को इंगित करते हुए उसे स्व-पर-कल्याणी बताया है। वस्तुत: इस महाकाव्य का प्रमुख नायक तो साधु ही है जो कुम्भकार को भी दिशा देता है। (९) महाकाव्य में आयुर्वेदिक चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा एवं सन्तुलित अहिंसक पथ्य की प्राचीन परम्परा को पुष्ट किया है । मणि, मूंगा, मुक्ता आदि की उपचार प्रभावकता इन उपचारों के समक्ष नगण्य मानी गई है। (१०) स्फटिक की झारी, तीन बदलियाँ, माटी और काँटा और अनेक प्रकरणों में तर्कसंगत संवाद के बाद पात्रों द्वारा अपनी भूल स्वीकार करने एवं क्षमा माँगने की घटनाएँ आज के अहंभावी युग के लिए प्रेरक उदाहरण हैं।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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