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________________ 206 :: मूकमाटी-मीमांसा करता है। श्रेष्ठ व्यक्ति के द्वारा साहित्यकार के महत्त्व तथा अनासक्ति भाव पर भी प्रकाश डाला है : "महापुरुष प्रकाश में नहीं आते / आना भी नहीं चाहते, प्रकाश-प्रदान में ही / उन्हें रस आता है।” (पृ. २४५ ) आपने अपनी कृति में रचना के भाव को भी बताया है : "मैं यथाकार बनना चाहता हूँ / व्यथाकार नहीं । और / मैं तथाकार बनना चाहता हूँ / कथाकार नहीं । इस लेखनी की भी यही भावना है - / कृति रहे, संस्कृति रहे आगामी असीम काल तक / जागृत "जीवित" अजित !” (पृ. २४५ ) वास्तव में एक महान् सन्त चरित्र की ही प्रस्तुति 'मूकमाटी' में की गई है । किन्तु वह केवल विरक्ति भावमय उपदेशकर्ता मात्र ही नहीं है, वह जीवन के सत्य, सौन्दर्य और मूल्यों का प्रस्तोता है तथा नव संस्कृति, समाज और मानव का आदर्श अभिव्यंजित करता है : 46 'अब धन- संग्रह नहीं, / जन-संग्रह करो ! / और / लोभ के वशीभूत हो अंधाधुन्ध संकलित का/ समुचित वितरण करो ।” (पृ. ४६७) इतना ही नहीं, वह नवयुग का आह्वान भी भरपूर वेग से करता है : : "नया मंगल तो नया सूरज / नया जंगल तो नयी भू-रज नयी मिति तो नयी मति/ नयी चिति तो नयी यति ... नयी पलक में नया पुलक है / नयी ललक में नयी झलक है नये भवन में नये छुवन हैं / नये छुवन में नये स्फुरण हैं ।" (पृ. २६३ - २६४) नई शक्ति, नई ऊर्जा, ओजस्विता तथा नव जीवन की कामना और इन सबसे जीवन में एक नया निखार आए - यही कवि का काम्य है। समग्र दृष्टि से यह काव्य रचना केवल भाव सौन्दर्य और उदात्त विचार निधि से ही पूरित नहीं है, अपितु आज के युग के सन्दर्भ में इसकी प्रासंगिकता अत्यन्त सार्थक है । यदि हमें अपनी वर्तमान और भावी पीढ़ियों को स्वस्थ संस्कार, दृष्टि, विचार, आदर्श तथा कर्मशीलता देनी है, तो हमें ऐसी कृतियों की बहुत आवश्यकता है । नव संस्कारशीलता वर्तमान युग की महानतम आवश्यकता है। हम पिछली शताब्दी से जिस विषमता और विभीषिका का सामना कर रहे हैं, असंगतियों में जी रहे हैं, जीवन मूल्यों के निरन्तर ह्रास को सहन कर रहे हैं, भविष्य के प्रति शंका और अनिश्चय में जी रहे हैं तो हमें निश्चय ही ऐसे साधक कवियों से प्रेरणा लेनी होगी। जीवन मूल्यों की समग्रता और पूर्णता का प्रबोधक यह महाकाव्य हमारे जीवन में पनपते अनेक विकारों, जड़ताओं और हीनवृत्तियों को दूर करेगा और साथ ही साथ कलाकार की सामाजिक उपादेयता को भी स्थापित करेगा । नैतिक उत्थान और लोक मंगल का समन्वय होने के साथ-साथ यथार्थ का उचित परिबोध भी 'मूकमाटी' द्वारा होता है Rinoj णमो 5000 पृष्ठ 990 झिलमिल झिलमिल..... बहुत कम सुनने को मिला यह ।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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