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________________ आधुनिक हिन्दी काव्य की अप्रतिम उपलब्धि : 'मूकमाटी' __ डॉ. ब्रज भूषण शर्मा 'मूकमाटी' की रचना आधुनिक हिन्दी काव्य की एक अप्रतिम उपलब्धि है, जो अन्तःप्रज्ञा की अन्त:सलिला के मन्थन द्वारा आत्मज्ञान पूरित विवेक का भावास्वादन और कृति में निहित महती भावना का अनुभव पाठकों को कराती है। इस रचना में कवि का उद्देश्य सम्भवत: तुच्छतम समझी जाने वाली वस्तु की उपादेयता और उसमें छिपे सौन्दर्य से हमारा परिचय कराना ही नहीं है अपितु इसके माध्यम से इस सृष्टि के प्रपंच में व्याप्त उन पक्षों से भी हमारा परिचय कराना है जो दृष्ट होकर भी अदृष्ट प्रतीत होते हैं। हमारी दृष्टि उन रहस्यों को भेद कर मूल सत्य को नहीं देख सकती: "रहस्य के बूंघट का उद्घाटन/पुरुषार्थ के हाथ में है रहस्य को सूंघने की कड़ी प्यास/उसे ही लगती है जो भोक्ता संवेदन-शील होता है।" (पृ. १६३) हमारी जीवन तरंगें रहस्य में छिपी हैं। हमें उनको अपने पुरुषार्थ, ज्ञान, विवेक द्वारा उद्घाटित करना है । कवि ने सभी रहस्यों को माटी तथा कुम्भकार में प्रतीक-विधान द्वारा वर्णित किया है। कवि माटी की महिमा का संकेत करता है: “कहाँ तक कही जाय माटी की महिमा,/तुला कहाँ है वह, तौलें कैसे ?/किससे तुलना करें माटी की/यहाँ पर?" (पृ. ४०६) कुम्भकार का यह कथन भाव,गुण,धर्म की महत्ता उजागर करता है। प्रथम खण्ड में माटी शिल्पी को अपना इतिहास बताती है । और कवि माटी के जीवन, उसके त्याग, सहनशीलता, विनय और पीड़ा से करुण, विगलित हो उठता है । माटी का जीवन ही वास्तविक और सात्त्विक जीवन है । माटी में ही यह गुण है कि वह अव्यक्त भावों को व्यक्त कर सकती है। वह भावों को निकटता देकर तन की दूरी को मिटाती है । कवि माटी के द्वारा ही अध्यात्म की व्याख्या करता है : __ "वासना का विलास/मोह है,/दया का विकास/मोक्ष है।" (पृ. ३८) मृदुल और कठोर की व्यंजना कंकरों और माटी के माध्यम से की गई है : "कंकरों का दल रो पड़ा।/फिर, प्रार्थना के रूप में"ओ मानातीत मार्दव-मूर्ति,/माटी माँ !/एक मन्त्र दो इसे । जिससे कि यह/हीरा बने/और/खरा बने कंचन-सा"!" (पृ. ५६) हम संसार में यत्र-तत्र बिखरी हुई वस्तुओं के महत्त्व, गरिमा और उनकी उपादेयता से अपरिचित रह जाते हैं। माटी इसी ओर हमारा ध्यान दिलाती है। __एक तो कवि, फिर ज्ञानान्वेषण और विवेक-तृषा में लीन, उस पर दार्शनिक तत्त्ववेत्ता- ये सभी गुण एक ऐसी काव्य रचना करते हैं जो हमें जीवन के शाश्वत, सनातन मूल्यों और सत्यों से परिचित कराने में समर्थ हैं। हम उनका नित्य अनुभव करके भी उनसे विलग रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम जीवन की सच्ची संवेदना और आत्मा में निहित सौन्दर्य-तत्त्व से अनभिज्ञ रह जाते हैं। हम इन्हें तभी देख पाते हैं, अनुभव कर पाते हैं जब हम अपनी मिथ्या
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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