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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 193 अन्योक्ति, विरोधाभास, अपह्नुति, उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास, सन्देह, अतिशयोक्ति, काव्यलिंग आदि अनेक अर्थालंकार काव्य की महनीयता को बढ़ा रहे हैं। रूपक अलंकार तो आद्यन्त दृष्टिगोचर होता है, जैसे 64 'आस्था के तार (पृ. ९), साधना की अंगुलियाँ (पृ. ९), विषमता की नागिन (पृ. १२), बोधि की चिड़िया (पृ. १२), क्रोध की बुढ़िया (पृ. १२), आशा के पद (पृ. १३), सफलता - श्री (पृ. २२), भावना के फूल (पृ. ४१), आह की तरंग (पृ. २८४), पक्षपात का सर्प (पृ. ४२०), समता की सीढ़ियाँ (पृ. ४२० ), पाप का सागर (पृ. ४२१ ) " इत्यादि । “अछूता-सा(पृ. १५), हलका - सा (पृ. १४), उपहास करती - सी (पृ. २०), महक - सी (पृ. १२० ), घावसे (पृ. ३१), छेद-से (पृ: ३१ ), सन्देह - सा (पृ. ३१), प्रकाश डालता - सा (पृ. १२५ ) " आदि उत्प्रेक्षा अलंकार नगीनों की भाँति जड़े हुए हैं। कहीं-कहीं तो उत्प्रेक्षा की झड़ी-सी लगा दी है। अलंकारों की रानी उपमा का प्रयोग तो अत्यन्त सार्थक है- “छाया की भाँति (पृ. २) खसखस के दाने - सा (पृ. ७), विद्युत्-सम (पृ. २२), मीठे मोदक - सम (पृ. ११९), चन्दन तरु - लिपटी नागिन - सी (पृ. १३०), घृत से भरा घट-सा (पृ. १६५), दूध- सम (पृ. २१९), पारा - सम (पृ. २१९ ) " आदि । वक्रोक्ति अलंकार का प्रयोग भी अनेक स्थानों पर है, जैसे : " रति और विरति के भाव / एक से होते हैं क्या ?" (पृ. ३३) : दृष्टान्त अलंकार का प्रयोग आचार्यप्रवर ने विषय के स्पष्टीकरण के लिए भी किया है, जैसे " पल में पलकों में हलचल हुई / मुँदी आँखें खुलती हैं, / जिस भािँ प्रभाकर के कर-परस पाकर / अधरों पर मन्द मुस्कान ले सरवर में सरोजिनी खिलती है।" (पृ. २१५) विरोधाभास अलंकार में विरोध का आभास रहता है, विरोध नहीं। इसका सुन्दर प्रयोग काव्य में है । उदाहरणार्थ : " अहित में हित / और / हित में अहित / निहित- सा लगा इसे ।" (पृ. १०८ ) ११. आधुनिकता बोध आचार्यप्रवर निःसन्देह आध्यात्मिक जगत् के ज्ञाता व जिन- धर्ममार्ग के सजग प्रहरी हैं। आध्यात्मिकता बाह्य निरपेक्ष होती है । परन्तु आचार्यप्रवर एतावता बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, क्योंकि जहाँ उन्होंने स्व- पर उत्थान हेतु आत्मकल्याण मार्ग को स्वीकार किया है वहाँ बाह्य जगत् पर भी उनकी पूर्ण दृष्टि है । आज हमारे देश की प्रमुखतम समस्या आतंकवाद है, जो देश को दो किनारों से पकड़कर तोड़ना चाहता है। प्रस्तुत ग्रन्थ का सेठ धर्मात्मा होकर भी आतंकवाद से पीड़ित है । वह सपरिवार धन-दौलत सम्पन्न महल को छोड़कर वन की शरण लेता है, परन्तु धर्मरूपी माटी का घट उसका साथ देता है और अन्तत: सुरक्षा भी करता है। आचार्यप्रवर ने आतंकवाद के विषय में कहा है : १. "जब तक जीवित है आतंकवाद / शान्ति का श्वास ले नहीं सकती / धरती यह ।” (पृ. ४४१) २. " आतंकवाद का दल / आपत्ति की आँधी... ।” (पृ. ४१९ ) ३. आतंकवाद के जन्म का मूल कारण व्यक्ति के मानस को टीस पहुँचना है : 46 'यह बात निश्चित है कि / मान को टीस पहुँचने से ही, आतंकवाद का अवतार होता है ।" (पृ. ४१८ ) वर्तमान भारतीय समाज की ज्वलन्त समस्या दहेजरूपी दानव है जो रात-दिन न जाने कितनी भोली-भाली
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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