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मूकमाटी-मीमांसा :: 173 पदों पर पदस्थ व्यक्तियों को इन पदों पर सदैव बने रहने की तृष्णा घेर लेती है। यह तृष्णा अत्यधिक कष्टदायक होती है। इस पद-लिप्सा एवं प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकारी की अन्तिम आकांक्षा को स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं :
"जितने भी पद हैं/वह विपदाओं के आस्पद हैं,/पद-लिप्सा का विषधर वह
भविष्य में भी हमें न सूंघेबस यही भावना है, विभो !" (पृ. ४३४) अरिहन्त और जन-सन्त से हमारी यही याचना है कि वे हमें ऐसा विवेक दें कि हम राष्ट्र के उत्थान में सदैव संलग्न रहकर निम्नांकित पंक्तियों को अपने शेष जीवनकाल में तन-मन से गुनगुनाते रहें :
"धरती की प्रतिष्ठा बनी रहे, और/हम सब की धरती में निष्ठा घनी रहे, बस ।” (पृ. २६२)
[सन्मति वाणी' (मासिक), इन्दौर-मध्यप्रदेश, सितम्बर, २००० ]
पृष्ठ १८९ जब कभीधरापर--- - ... धरती के वैभव को
ले गया है।