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________________ 84 :: मूकमाटी-मीमांसा "...जो/पुरुष-चित्त की वृत्ति को/विगत की दशाओं/और अनागत की आशाओं से/पूरी तरह हटाकर/ 'अब' यानी आगत - वर्तमान में लाती है/ 'अबला' कहलाती है वह..! बला यानी समस्या संकट है/न बला' 'सो अबला समस्या-शून्य-समाधान !/अबला के अभाव में सबल पुरुष भी निर्बल बनता है/समस्त संसार ही,/फिर, समस्या-समूह सिद्ध होता है,/इसलिए स्त्रियों का यह 'अबला' नाम सार्थक है।" (पृ. २०३) आचार्यश्री ने नारी को ज्ञान-ज्योति प्रदीप्त करने वाली, तिमिराच्छादन हटाकर जीवन को उदात्त बनाने वाली, पुरुष चित्त की वृत्तियों को सन्मार्ग पर लाने वाली तथा नारी को समस्या शून्य समाधान के रूप में प्रस्तुत करके 'अबला' नाम को सार्थकता प्रदान की है। प्रेम और पातिव्रत्य के ज्वलन्त आदर्शों की रक्षा करने वाली नारी में पति के लिए त्याग और तपस्या से पूर्ण मंगल-कामना ही उत्पन्न होती है। यही उसका तप, यही उसके हृदय की पावन निधि है तथा यही उसके शील एवं सात्त्विकता की शक्ति है । आचार्यश्री के शब्दों में : "धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थों से/गृहस्थ जीवन शोभा पाता है । इन पुरुषार्थों के समय/प्राय: पुरुष ही/पाप का पात्र होता है, वह पाप, पुण्य में परिवर्तित हो/इसी हेतु स्त्रियाँ/प्रयल-शीला रहती हैं सदा । पुरुष की वासना संयत हो,/और/पुरुष की उपासना संगत हो, यानी काम पुरुषार्थ निर्दोष हो,/बस, इसी प्रयोजनवश वह गर्भ धारण करती है ।/संग्रह-वृत्ति और अपव्यय-रोग से पुरुष को बचाती है सदा,/अर्जित-अर्थ का समुचित वितरण करके । दान-पूजा-सेवा आदिक/सत्-कर्मों को, गृहस्थ धर्मों को/सहयोग दे, पुरुष से करा कर/धर्म-परम्परा की रक्षा करती है ।" (पृ. २०४-२०५) वास्तव में नारी शील, संयम एवं सौन्दर्य की समन्वित मूर्ति है । शेक्सपियर के शब्दों में : "नारी अपने सौन्दर्य के कारण रूपगर्विता होती है, शील के हेतु अत्यन्त आकर्षण का पात्र बनती है एवं अपनी सौम्यता से अलौकिक दिखलाई देती है।'' शील, संयम एवं भव्यता-ये गुण नारी के रक्षक देवता हैं। आचार्यश्री के शब्दों में : “ 'स्' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल संयत बनाती है सो 'स्त्री' कहलाती है।” (पृ. २०५) 'स्त्री' शब्द 'स्तै' धातु से बना है । शील, संयम एवं लज्जाशील होने के कारण उसे स्त्री कहा गया है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की प्रतीक नारी त्याग एवं तपस्या का पंजीभूत स्वरूप है । नारी के मुख्य स्वरूप हैं, कन्या – जिसे कुमारी, सुता एवं दुहिता भी कहते हैं, जाया- पत्नी एवं जननी- माँ । कौमार्य काल में कन्या रूप शक्ति नारी जीवन की साधना के रूप में अंकुरित होकर पल्लवित होती है। वही शक्ति भार्या - जाया - पत्नी के रूप में विकसित होकर
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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