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________________ 'मूकमाटी' महाकाव्य में वर्णित नारी विषयक अवधारणा : नारी एक रूप अनेक डॉ. सरोज गुप्ता "इनकी आँखें हैं करुणा की कारिका / शत्रुता छू नहीं सकती इन्हें मिलन-सारी मित्रता/मुफ्त मिलती रहती इनसे । यही कारण है कि/इनका सार्थक नाम है 'नारी' ।” (पृ. २०२ ) - कवि वरेण्य आचार्य विद्यासागरजी ने नारी को प्राचीन मूल्यों एवं उत्तम आदर्शों के अनुरूप नवीन दृष्टिकोण से महिमामण्डित किया है | वह सृष्टि की उत्पादिका, प्रतिपालिका, करुणामयी, सतत मित्र स्वरूपा एवं समस्त सुख राशियों का उद्गम है । 'न अरि' के रूप में वह शत्रु, नहीं वरन् मित्र है। नारी में सहनशक्ति और धैर्य के अतिरिक्त श्रद्धा " जो अब यानी / 'अवगम' ज्ञानज्योति लाती है, तिमिर - तामसता मिटाकर / जीवन को जागृत करती है अबला कहलाती है वह !" (पृ. २०३ ) गुण भी विशेष रूप से पाया जाता है। श्री जयशंकर प्रसादजी ने तो नारी को साक्षात् श्रद्धा कहा है - "नारी तुम केवल श्रद्धा हो”। कविवर मैथिलीशरण गुप्त ने भी नारी को "एक नहीं दो-दो मात्रायें, नर से भारी नारी” कहकर को प्रमुखता दी है। प्रो. शीलचन्द्र जैन के शब्दों में : “नारी एक शक्ति है । वह पुरुष की प्रेरणा और सहचरी है। उसमें सागर जैसी गम्भीरता, आकाश जैसी विशालता और पृथ्वी जैसी क्षमाशीलता समाविष्ट है ।" नारी के मुख्य स्वरूपों में स्त्री, महिला, दुहिता, कन्या या कुमारी, जाया, जननी, अबला, सुता, अंगना एवं प्रकृति आदि हैं। आचार्य विद्यासागरजी ने 'मूकमाटी' महाकाव्य में नारी के पर्याय शब्दों की अर्थान्वेषण दृष्टि से विशद व्याख्या की है । आचार्यश्री पद-पद पर पददलित परम्परा से अबला के रूप में प्रतिष्ठित नारी को नया अर्थ, नया भाव, नया बोध देते हुए 'अबला' शब्द को नए ढंग से परिभाषित करते हैं : — राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने "अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी" 'कहकर जहाँ 'आँचल के दूध' द्वारा नारी हृदय की उदारता, दान, त्याग एवं ममत्व को उद्घाटित किया है, वहीं ‘आँखों में पानी’ द्वारा वियोग- वेदना को प्रकट किया है । भारत में अबला पर परतन्त्रता का बन्धन था । वह पूर्णरूपेण पराधीन रही । विवाहिता की धन सम्पत्ति पर पति का अधिकार हो गया था । नारी की इस स्थिति का वर्णन आचार्यश्री के शब्दों में : " स्त्री - जाति की कई विशेषताएँ हैं, / जो आदर्श रूप हैं पुरुष के सम्मुख । प्रतिपल परतन्त्र हो कर भी / पाप की पालड़ी भारी नहीं पड़ती / पल-भर भी ! इनमें, पाप-भीरुता पलती रहती है/ अन्यथा, स्त्रियों का नाम 'भीरु' क्यों पड़ा ?" (पृ. २०१ ) नारी को उसकी शारीरिक, मानसिक तथा सुकोमल संरचना के कारण केवल इने-गिने अधिकार ही दिए गए थे। बचपन में उसे पिता, यौवनावस्था में पति तथा प्रौढ़ावस्था में पुत्र का संरक्षण प्राप्त था । इसीलिए उसे 'भीरु' नाम से सम्बोधित किया गया । परन्तु आचार्यश्री को नारी का 'अबला' वाला कमजोर रूप मान्य नहीं है। वह कहते हैं :
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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