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82 :: मूकमाटी-मीमांसा जिसमें अवगाहन कर मन, हृदय और बुद्धि निर्मल हो जाती है । सुन्दर भावाभिव्यंजना, सरस काव्य शैली और सरल भाषा में निबद्ध कर यह अनूठी रचना प्रस्तुत की गई है । दर्शन का सुधारस पिला देने के कारण इस काव्य में पुष्टता, परिपक्वता और सौष्ठव का गुण आया है। इससे काव्य में गुरुता भी आई है। कवि अपने भावों को चित्रवत् अखण्ड रूप में व्यक्त करने में समर्थ है । आस्था, आशा और विश्वास के स्वर यत्र-तत्र-सर्वत्र कृति में गूंज रहे हैं। माटी जैसी अकिंचन परन्तु मूल्यवान् वस्तु को इतने सुन्दर और भव्य रूप में प्रस्तुत कर देना, और उसकी छिपी हुई मूक वेदना को पहचानकर मुखरित कर देना एवं साकार रूप प्रदान कर देना, रचनाकार की अभूतपूर्व सफलता है । मूकमाटी को एक मंगल घट के रूप में परिवर्तन कर देना कुम्भकार-रचनाकार की सफल साधना है । यह अनवरत, अथक परिश्रम का ही सुफल है। आज के सन्दर्भ में भी यह काव्य अधिक मूल्यवान्, जीवन्त और प्राणवान् सिद्ध होता है । मूकमाटी के समान विश्व में न जाने कितने लोग निरीह, पद दलित और व्यथित हैं। उनकी मूक वेदना को पहचानकर उसे प्राणवान् बना देना बहुत कठिन है । सभी में किसी न किसी रूप में मूकमाटी की-सी वेदना अन्तर्निहित है और गुरु का प्रसाद ग्रहण कर मुक्ति की आकांक्षा सभी करते हैं। मूकमाटी की वेदना और उसे कंचन रूप देने की चेतना विश्व भावना से ओत-प्रोत और परिव्याप्त है । जीवन के उन्नयन, आत्म शुद्धि और दर्शन लाभ में इसकी परिणति हुई है। रचनात्मक और दार्शनिक दृष्टि से विश्व को पहचानने की शक्ति और अन्तर्दृष्टि सन्त-कवि में दिखाई देती है । कवि स्वयं शिल्पी, कुम्भकार एवं रचनाकार है जिसने मानव जीवन की ध्रुव सत्ता को पहचाना है । रचनाकार की साधना की चरम उपलब्धि यह है :
"विश्वास को अनुभूति मिलेगी/अवश्य मिलेगी/मगर मार्ग में नहीं,/मंजिल पर !/और/महा-मौन में/डूबते हुए सन्त...
और माहौल को/अनिमेष निहारती-सी/ ''मूक-माटी।" (पृ. ४८८) यह काव्य मानव जीवन का अध्यात्म चिन्तनपरक काव्य है । महाकाव्योचित औदात्य होने के कारण इसे स्वच्छन्द एवं स्वतन्त्र दृष्टि से महाकाव्य कहा जा सकता है। लगभग पाँच सौ पृष्ठों का यह विशालकाय काव्य मानव जीवन को प्रेरणा देने वाला अनुपम काव्य है । महाकाव्य के शास्त्रीय प्रतिमानों के आधार पर, भले ही यह महाकाव्य के रूप में न स्वीकार्य हो, परन्तु उदात्तता, गरिमा, अन्तर्दृष्टि और अनुभव की गहराई को देखते हुए इसे महाकाव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है । यह काव्य मानव जीवन का अनमोल रत्न है । यह महाकाव्य मानवीय मूल्यों की पहचान कराता है तथा यह काव्य मानव जीवन को मंगल रूप भी प्रदान करता है, अतएव निःसन्देह यह महारचनाकार की श्रेष्ठतम रचना है।
पृष्ठ ४२७ दुग्ध का विकास होता है...अंतिम कुछ करता।