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भाषार्थः
परिशिष्टम्
३६३ प्रयोगाः
भाषार्थः । प्रयोगाः सू० ६७१
को उठा हुआ है। द्विमूर्धः-दो सिरा।
विकाकुत् जिसका ढोंट विकृत हुआ है। त्रिमूर्धः-तीन सिरा।
सू० ६७६ सू० ६७२
पूर्णकाकुत्-जिसके टोंठ पूर्ण हैं । अन्तर्लोमः-भीतर बालों वाला।
सू०६७७ बहिर्लोमः-बाहर बाला वाला ।
। सुहृत्-मित्र । मू० ६७३
दुहृत्-शत्रु । व्याघ्रपात्-व्याघ्र के समान पाओंवाला । हस्तिपाद:-हाथी के समान पाओंवाला।
स०६७६ कुसूलपादः- कुसूल के समान पात्रोंवाला। स मान व्यूढोरस्क:-विशाल वक्षःस्थलवाला ।
प्रियसर्पिष्कः-घृतप्रिय । सू० ६७४ द्विपात्-दुपाया।
स. १८० सुपात्-सुन्दर पाओंवाला।
युक्तयोगः-योगी। सू० ९७५
सू०६८१ उत्काकुत्-जिसका तालु या ढोंठ ऊपर | महायशस्कः-महाकीर्ति ।
इति बहुव्रीहिः।
अथ द्वन्द्वः स० ६८२
स. १८४ ईश्वरं गुरु च भजस्व-ईश्वर और गुरु को हरिहरौ-भगवान् विष्णु और महादेव । भजो।
स० १८५ भिक्षामट गां चानय-भिक्षा लाओ साथ | ईश कृष्णौ-महादेव और श्रीकृष्ण । गौ को भी लेते आना।
शिवकेशवौ-महादेव और केशव । धवखदिरौं छिन्धि-एक ही साथ घव और
स. १८७ खदिर (खैर) को काट दो। संज्ञापरिभाषम् संज्ञा और परिभाषा का
पितरौ-माता और पिता। समूह।
सू० ६८८ सू०६८३
पाणिपादम्-हाथ पाओं। राजदन्तः प्रधान दाँत ।।
मार्दङ्गिकवणविकम्-मृदङ्ग बजाने वालों अर्थधर्मों-अर्थ और धर्म ।
और बंशी बजानेवाले का समूह ।