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स०६५७
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लघुसिद्धान्तकोमुखाम् प्रयागाः भाषार्थः प्रयोगाः भाषार्थः
स. ६६१ अहोरात्रः-दिन रात ।
कुक्कुटमयूरों--कुक्कुट और मयूरी । सर्वरात्रः-सारी रात ।
पञ्चकपालः-पाँच कपालों में संस्कार संख्यातरात्र:-गिनी हुई रात।
किया हुआ। द्विरात्रम्-दो सतें।
स०६६२ त्रिरात्रम्-तीन रातें।
प्राप्तजीविकः--प्राप्तजीविक । सू० १५८
| अापन्नजीविकः-प्राप्तजीविक । परमराजा-महाराज।
अलङकुमारिः कुमारी के योग्य । स०६५६
. सू०६६३ महाराजः-महाराज।
अर्धर्चम्--ऋचा का अर्धभाग। महाजातीयः-महान ।
मृदु--पचति-सुन्दर पकाता है। स. १६०
| प्रातः कमनीयम्-सुन्दर प्रातःकाल । द्वादश-बारह (१२)।
इति तत्पुरुषः। अष्टाविंशतिः-अठाईस (२८)।
अथ बहुव्रीहिः स० ६६७
| रूपवद्भार्य-जिसकी भार्या रूपवती है । कएठेकाल:-नीलकठ।
वामोरूभायः--जिसकी भार्या सुन्दरोरू है। प्राप्तोदकः-जल जिसे प्राप्त है ऐसा ग्राम ।।
स० ६६६ ऊढरथः--रथ में जुड़ा हुआ बैल ।
कल्याणोपञ्चमाः-जिनमें पाँचवीं कल्याणउपहृतपशुः--पशु जिसको भेंट किया गया है
ह कारिणी है। उदधतौदना--भात जिसमें से निकाल स्त्रीप्रमाण:-जिसकी प्यारी कल्याणलिया गया है।
कारिणी है। पीताम्बरः--पीले वस्त्रोंवाला। वीरपुरुषकः-जिसमें वीर पुरुष रहते हैं ।
स० ६७० प्रपर्णः-गिरा हुआ पत्ता।
दीर्घसक्थः-लम्बे ऊरुवाला। अपुत्रः-पुत्रहीन ।
जलजाक्षी-कमलनयना। सू०६६८
दीर्घसक्थिः-लम्बे धुरे वाला (छकड़ा)। चित्रगुः--चित्रित गौओंवाला, (भगवान्)। स्थूलाक्षा-मोटी आँखोंवाली (लाठी)।