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लघुसिद्धान्तकौमुद्याम्
| प्रयोगाः भाषार्थः ब्रजमवरुणद्धि गाम्-व्रज में गौ को रोकता
प्रयोगाः भाषार्थः मेंदा करके भोजन करता है।
अथ विभक्त्यर्थाः
स०८८८ उच्चैः-ऊँचा। नीचैः-नीचा । कृष्णः-भगवान् श्री कृष्ण । श्रीः-लक्ष्मी। ज्ञानम्--ज्ञान । तटः-तट । तटी-तट। तटम, द्रोणो व्रीहिः--द्रोण भर धान्य । एक: एक। द्वौ-दो। बहवः-बहुत से।
- सू०८८६ राम!--हे राम।
सू० ८६१ हरिं भजति-श्रीहरि को भजता है। हरिः सेव्यते- " लक्ष्म्या सेवितः--लक्ष्मी से सेवित ।
सूत्राङ्काः ८९२ गां दोग्धि पयः--गौ से दूध दुहता है। बलिं याचते वसुधाम्--बलि से पृथ्वी
मांगता है। तण्डुलानोदनं पचति--चावलों से भात
बनाता है। गर्गान् शतं दण्डयति--गर्गों से सौ रुपया
दण्ड लेता है।
माणवकं पन्थानं पृच्छति-बालक से
रास्ता पूछता है। वृक्षमवचिनोति फलानि-वृक्ष पर से फल
चुनता है। माणवकं धर्म ब्रूते शास्ति वा-बालक को
धर्मोपदेश देता है। शतं जयति देवदत्तम्-देवदन से सौ ____ रुपया जीतता है। सुधां क्षीरनिधिं मथ्नाति--अमृत के लिये . समद्र को मथता है। देवदत्तं शतं मुष्णाति-देवदत्त के यहाँ
से सौ रुपया चुराता है। ग्राममजां नयति हरति कर्षति वहति वा____बकरी को ग्राम में ले जाता है। बलिं भिक्षते वसुधाम्-बलि से पृथ्वी (मिक्षा) माँगता है। माणवकं धर्म भाषते-बालक को धमों___ पदेश करता है।
सू० ८६५ समय बाणन हवा वाला-राम न बाण | से बाली को मारा।
स०८६७ विप्राय गां ददाति-ब्राह्मण को गौ देता है।
सूत्राडाः ८१८ | हरये नमः--श्री हरि के प्रति नमस्कार । | प्रजाभ्यः स्वस्ति-प्रजात्रों के प्रति स्वस्ति ।