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________________ संज्ञाप्रकरणम् कादयो मावसानाः स्पर्शाः । यणोऽन्तःस्थाः । शल उष्माणः । श्रचः स्वराः। अकः, अॅखः इति कखाभ्यां प्रागर्धविसर्गसदृशो जिह्वामूलीयः । अपः, अफः, इति पफाभ्यां प्रागर्धविसर्गसदृश उपध्मानीयः । श्रं, अः, इत्यचः परावनुस्वारविसर्गौ । सकर्णग्राहक सूत्रम्) ११ अणुदित् सवर्णस्य चाप्रत्ययः ' १ । १ । ६६ । प्रतीयते विधीयत इति प्रत्ययः । अविधीयमानोऽण उदिश्च सवर्णस्य stari बाह्यप्रयत्नविवेकः विवार : श्वासः, प्रघोषः क. ख. श, च. छ ष. ट. उ. स, त. य. प. फ. संवारः, नादः, घोषः ङ ग घ य. ज. झ ञ व ड. ढ ण. र. द. ध. न. ल. ब. भ. म ह. अल्पप्राणः क. ग. ङ. य. श्र लु च ज ञ व ड ए ट. ड. ग. र. उ. प्र. त. द. न. ल. ऋ. ऐ. प. ब. म. श्रौ. महाप्रारणः ख. घ श. छ भ ष ठ ढ. स. थ. ध. ह फ भ उदात्तः धनु स्वरितः दात्तः, प्र. ए. इ. श्रो. उ. ऐ. ऋ.श्रौ. ल. ७ सर्वेषां वर्णानां प्रत्येकं चत्वारो बाह्यप्रयत्नाः । १ - प्रतोयते = विधीयत इति प्रत्ययः स न भवतीत्यप्रत्ययस्तदाह वृत्तौ प्रविधीयमान इति श्रादेशप्रत्ययागमभिन्नो ऽण इत्यर्थः । वर्गों के द्वितीय चतुर्थ वर्ण और शल प्रत्याहार इनका महाप्राण प्रयत्न होता है | 'क' से 'म' तक स्पर्श वर्ण कहलाते हैं । यणों को अन्तःस्थ वर्ण कहते हैं । शल प्रत्याहार के वर्णों को ऊष्म वर्ण कहते हैं । चों की स्वर संज्ञा है । कख से पूर्व अर्ध विसर्ग-सदृश जिह्वामूलीय कहलाता है । पफ से पूर्व अर्व त्रिसर्ग सदृश उपध्मानीय कहलाता है। अनुस्वार और विसर्ग च से परे होते हैं; जैसे अं अः । ११ - विधान किये जानेवाले को प्रत्यय कहते हैं । अविधीयमान ऋण र उदित् सवर्ण का बोधक होता है । केवल इसी सूत्र में अपर ( लण के ) णकार से लिया जाता है। कु-चु-टु-तु-पुये उदित कहलाते हैं। इस प्रकार '' यह अठारह का ·
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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