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________________ उदाहरण "पुष्यमित्रो यजते" भी यह सिद्ध करता है कि पतञ्जलि राजा पुष्यमित्र के समानकालिक थे । पुष्यमित्र के सम्बन्ध में ऐतिहासिकों का निश्चित मत है कि यह समय ई० पू० दूसरी शताब्दी ( ई० पू० १५० ) है तो फिर महाभाष्यकार पतञ्जलि का समय ई० पू० १५० ही कहा जा सकता है। किन्तु महामहोपा याय पं० गिरिधर शर्माजी चतुर्वेदी पाणिनि, कात्यायन, पतञ्जलि-इन तीनों के समय के सम्बन्ध में अपना मत प्रकट करते हुए लिखते हैं कि-"पाणिनि सस्कृत को भाषा नाम से पुकारते हैं। इससे सिद्ध होता है कि-पाणिनि के काल में संस्कृत बोलचाल की भाषा थी कात्यायन के समय में अपभ्रंश-बहुल भाषा की प्रवृत्ति हो गई थी और महाभाष्यकार पतञ्जलि के समय में तो अपभ्रंश भाषाओं की बहुत अधिक प्रवृत्ति हो गई थी। महाभाष्यकार स्वयं लिखते हैं कि - "सन्त्येकैकस्य पदस्य बहवोऽपभ्रंशा"। दूसरे पाणिनि के समय में उनकी जन्मभूमि गान्धार तथा तत्सन्निहित पंचनद प्रदेश विद्या का केन्द्र था। पर कात्यायन और पतञ्जलि के समय में प्राच्य प्रदेश विद्याकेन्द्र हो गया था। यह परिवर्तन अल्पसमयसाध्य नहीं है । पूर्वोक्त भाषा-सम्बन्धी महान् परिवर्तन भी खासे समय की अपेक्षा करतो है। तीसरे पाणिनि के सूत्रों पर कात्यायन से पहिले भी वार्तिक लिखे गये थे एवं कात्यायन के वार्तिकों पर भी पतञ्जलि से पहिले कई भाष्यग्रंथ लिखे गये थे, ऐसा माना जाता है । ___ ऐसी स्थिति में आजकल के ऐतिहासिकों का यह मत विशेष रूप से विचारणीय हो जाता है कि पतञ्जलि ई० पू० १५० में, कात्यायन ई० पू. ३५० में और पाणिनि ई० पू० ४५० में या ५५० में हुए हैं। क्योंकि इतने बड़े भाषा सम्बन्धी परिवर्तन और अनेक व्याख्या वार्तिक भाष्यादि का भिन्न-भिन्न प्रदेशों में निर्माण इतने कम समय के अन्तर में सम्भव नहीं प्रतीत होता, अतः मेरे ( म० म० गि० ध० शर्मा के ) विचार में पतञ्जलि यदि ई० पू० दूसरी शताब्दी में माने जाते हैं तो कात्यायन को ई० पू० सातवीं शताब्दी में और पाणिनि को ई० पू० बारहवीं शताब्दी में मानना युक्तिसङ्गत है।” पूर्वतन अध्ययन-क्रम पाणिनि व्याकरण के मूलग्रन्थ अष्टाध्यायी पर अनेकों वृत्तिग्रन्थ लिखे गये। बर्तमान में उपलब्ध सर्वोत्तम वृत्तिग्रन्थ है-जयादित्य और वामन की काशिकावृत्ति । यह वृति ईसा की सातवीं शताब्दी में लिखी गई थी। कात्यायन का वार्तिक ग्रन्थ पृथक उपलब्ध नहीं है, पतञ्जलि के महाभाष्य में ही समाविष्ट है। महाभाष्य पर अनेकों टीका-प्रटीकाएँ लिखी गई हैं। इनमें कैयट का प्रदीप और प्रदीप पर नागेश
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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