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" सांच को आंच नहीं"
पाठ दिये थे उनकी समालोचना करके अर्थ- परिवर्तन द्वारा अपनी मान्यता का बचाव करने की चेष्टा की, परन्तु मूल - सूत्रों में परिवर्तन अथवा कांट-छांट करने का कातर प्रयास किसी ने नहीं किया ।
उसके बाद स्थानकवासी साधु श्री अमोलकऋषिजी ने ३२ सूत्रों को भाषान्तर के साथ छपवाकर प्रकाशित करवाया । उस समय भी ऋषिजी ने कहीं-कहीं शब्द परिवर्तन के सिवाय पाठों पर कटार नहीं चलाई थी ।
विक्रम की २१ वी शती के प्रथम चरण में उन्ही ३२ सूत्रों को “सुत्तागमे ” इस शीर्षक से दो भागों में प्रकाशित करवाने वाले श्री पुष्पकभिक्खू (श्री फूलचन्दजी) ने उक्त पाठों को जो उनकी दृष्टि में प्रक्षिप्त थे निकालकर ३२ आगमों का संशोधन किया है । उन्होंने जिन-जिन सूत्रों में से जो-जो पाठ निकाले हैं उनकी संक्षिप्त तालिका नीचे दी जाती है -
(१) श्री भगवती सूत्र में शतक २० । ३०९ । सू. ६८३ - ६८४ भगवतीसूत्र शतक ३ । ३०२ में से ।
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भगवतीसूत्र के अन्दर जंघाचारण विद्याचारणों के सम्बन्ध में नन्दीश्वर मानुषोत्तर पर्वत तथा मेरु पर्वत पर जाकर चैत्यवन्दन करने के पाठ मूल में से उड़ा दिए गए हैं ।
(२) ज्ञाताधर्म - कथांग में द्रौपदी के द्वारा की गई जिनपूजा सम्बन्धी सारा का सारा पाठ हटा दिया है ।
(३) स्थानांग सूत्र में आने वाले नन्दीश्वर के चैत्यों का अधिकार हटाया गया है ।
(४) उपासक दशांग सूत्र के आनन्द श्रावकाध्ययन में से सम्यक्त्वोच्चारण का आलापक निकाल दिया है ।
(५) विपाकश्रुत में से मृगारानी के पुत्र को देखने जाने के पहले मृगादेवी ने गौतम स्वामी को मुंहपत्ति से मुंह बांधने की सूचना करने वाला पाठ उड़ा दिया है ।
(६) औपणातिक सूत्र का मूल पाठ जिसमें अम्बडपरिव्राजक के सम्यक्त्व
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