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________________ -6000 “सांच को आंच नहीं" 09602 उच्चरने का अधिकार था, वह हटा दिया गया है, क्योंकि उसमें “अरिहन्तचैत्य" और “अन्य तीर्थिक परिगृहीत अरिहन्त चैत्यों" का प्रसंग आता था। (७) राजप्रश्नीय सूत्रों में सूर्याभदेव के विमान में रहे हुए सिद्धायतन में जिनप्रतिमाओं का वर्णन और सूर्याभदेव द्वारा किये हुए उन प्रतिमाओं के पूजन का वर्णन सम्पूर्ण हटा दिया है। (८) जीवाभिगम सूत्र में किये गए विजयदेव की राजधानी के सिद्धायतन तथा जिनप्रतिमाओं का, नन्दीश्वर द्वीप के जिनचैत्यों का रुचक तथा कुण्डल दीप के जिनचैत्यों का, वर्णन निकाल दिया गया है । श्री जीवाभिगम की तीसरी प्रतिपत्ति के द्वितीय उद्देश में विरुद्ध जाने वाला जो पाठ था उसको हटा दिया है। ... (९) इस प्रकार जम्बूद्धीप प्रज्ञप्ति आदि सूत्रों में आने वाले सिद्धायतन कूटों में से “आयतन" शब्द की हटाकर “सिद्धकूट” ऐसा नाम रक्खा है। . (१०) व्यवहार-सूत्र के प्रथम उद्देशक के ३७ वे सूत्र के द्वितीय भाग में आने वाले “भावि जिनचेइअ" शब्द को हटा दिया है। उपर्युक्त सभी पाठ स्थानकवासी साधु धर्मसिंहजी से लगाकर बीसवीं सदी के स्थानकवासी साधु श्री अमोलक ऋषिजी ने ३२ सूत्रों को भाषान्तर के साथ छपवाकर प्रकाशित करवाया तब तक सूत्रों में विद्यमान थे। गतवर्ष सं. २०१९ के शीतकाल में जब हमने श्री पुष्पकभिक्खू सम्पादित “सुत्तागमे” नामक जैनसूत्रों के दोनों अंश पढ़े तो ज्ञात हुआ कि सूत्रों के इस नवीन प्रकाशन में श्री फूलचन्दजी (पुष्पक भिक्खू) ने बहुत ही गोलमाल किया है । सूत्रों के पाठ के पाठ निकालकर मूर्तिविरोधियों के लिए मार्ग निष्कण्टक बनाया है। मैंने प्रस्तुत सूत्रों के सम्पादन में की गई काटछांट के विषय में स्थानकवासी श्री जैनसंघ सहमत है या नहीं, यह जानने के लिए एक छोटा सा लेख तैयार कर “जनवाणी” कार्यालय जयपुर (राजस्थान) तथा चांदनी चौक देहली नं. ६ “जैनप्रकाश” कार्यालय को एक-एक नकल प्रकाशनार्थ भेजी, परन्तु उक्त लेख स्थानकवासी एक भी पत्रकार ने नहीं (71
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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