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________________ .-60@n “सांच को आंच नहीं" (0902 सूत्रके १०वें अध्ययनकी नियुक्ति से होती है । भगवती सूत्र १४ शतक ७ उद्देशा 'चिरसंसिट्ठोडसि गोयमा चिर संथुओडसि गोयमा' सूत्र का संबंध भी उक्त नियुक्ति से ही बैठता है । अत: ऐसी बातों को कल्पित मानना आगमों की आशातना है। __३. भगवान महावीर के १४००० साधु की संख्या स्वहस्तदीक्षित - स्वशिष्य की समझना ऐसा खुलासा अनेक जगह पर आता है । जिससे गौतमस्वामी के शिष्यों से विरोध नहीं है । भगवान के केवली की ७०० की संख्या स्वहस्तदीक्षित, स्वशिष्य साधुओं की अपेक्षा से लेना। ४. कल्पसूत्र के बारे में बिना प्रमाण के उटपटांग बकवासो की विद्धसभा में कोई किंमत नहीं है । अति प्राचीन मथुरा के कंकाली टीले के लेखों से कल्पसूत्र की स्थविरावली प्रमाणित होने से कल्पसूत्र प्रमाणित सिद्ध होता ही है । समवायांग मूलसूत्र के ‘कप्पस्स. समोसरणं णेयं' पाठ से कल्पसूत्र की प्राचीनता सिद्ध होती है । दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति में भी कल्पसूत्र के वर्णन विभाग का 'पुरिम चरिमाण कप्पो मंगलं वद्धमाण तिथ्यम्मि ___इअ परिकहिया जिणगणहराई थेरावली चरितं' ..के द्वारा अतिदेश किया है। ..दशाश्रुतस्कंध की ८ वी (उदंशा) की चूर्णि में कल्पसूत्र के पाठों के अर्थ भी किये हुए है, जिससे चूर्णिकार कल्पसूत्र को दशाश्रुतस्कंध का विभाग ही मानते थे, यह स्पष्ट है । अत: मलयगिरी आदि आचार्यों तक नामोनिशान भी नहीं था,यह कहना लेखक की अज्ञता को सूचित करता है। . नियुक्ति - भाष्यादि को स्वतंत्र ग्रंथ कहना अज्ञानता है । नियुक्ति आदि सूत्र - आगम के उपर होने से उससे अभिन्न माने जाते है । भगवती आदि सूत्रों में भी सनिज्जुत्तिए. वगैरह से उसी का द्योतन होता है । अत: आगमों के निर्देश से उनका भी निर्देश हो ही जाता है, श्रुत संख्या में अलग से क्यो सोनावें ? ... अगर नंदी सूत्र में जिस' शास्त्र का उल्लेख नहीं हैं, वह पूर्वधररचित नही हो सकता है" ऐसा मानोंगे तो १० पूर्वधरउमास्वाति रचित तत्त्वार्थ सूत्र भी आपके लिए अप्रमाण बन जायेगा क्योंकि उसका भी उल्लेख नंदी सूत्र में नहीं है। = 664
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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