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________________ -60 “सांच को आंच नहीं” (09001 "मंदिर : आगम में प्रक्षेप” की समीक्षा मंदिर-मूर्ति विरोध के अभिनिवेश की धून में लेखकश्री भान ही भूल जाते है, अंटसंट लिखते है - “अन्य मत के शास्त्रों का भी रचनाकाल लेखन काल के बाद का ही समझना चाहिये" । अपने यहाँ आगमशास्त्र गुरुगम से मौखिक परंपरा से केवल साधुओं को ही मिलता था । आगमेतर जैन साहित्य और अजैन साहित्य भी देवर्द्धिगणि ने आगम लेखन करवाया, उसके पूर्व पुस्तकारूढ था ही। देवर्द्धि गणि के पूर्व मे भी वाचनाओं में शास्त्रलेखन हुआ था, ऐसा भी स्पष्ट उल्लेख है । परमात्मा के समवसरण में ३६३ पाखंडी बैठते थे, उनके मत के शास्त्र वगैरह नहीं थे, यह कहना कुकल्पना मात्र है । अन्यमत के शास्त्रों का रचनाकाल लेखनकाल के बाद का कहना कितना उचित है ? प्रामाणिक हस्तप्रतों के शुद्ध पाठों से सिद्ध किये बिना पूर्वाचार्यों की रचनाओं में बेधडक प्रक्षेप का बेधडक आक्षेप कदाग्रह प्रयुक्त है। सांप्रदायिक अभिनिवेश के कारण तथा मंदिर और अरिहंत परमात्मा की प्रतिमा के प्रति कट्टर द्वेष के कारण प्रक्षेप की कुकल्पना होती है । तटस्थ दृष्टि से लेखक विचार करें तो समाधान स्वत हो जाते है । जैनागमों में परस्पर अमुक स्थानों में विरोध हो, वहां पर जैसे समाधान किया जाता है, उसी दृष्टि से सोचने पर प्रक्षेप महसूस नहीं होगा, विरोध भी महसूस नहीं होगा। __१. रावण तीर्थंकर बनेंगे, १५ भवों के बाद बनेंगे (त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र पर्व सर्ग १० श्लोक नं. २३२ से २४४) इसलिए जो तीर्थंकर नामकर्म बाँधा था, वह सम्यक्त्व की हाजरी में अनिकाचित बांधा था और अनिकाचित तीर्थंकर नामकर्मवाले ४ थी नरक में जाने में कोई विरोध नहीं है। वहां जाने पर उसकी उदलना भी शक्य है निकाचित तीर्थंकर नामकर्म वाले ४ थी नरक में नहीं जा सकते है । जिससे रावण की बातमें विरोध का गंध लेश भी नहीं है। २. एक तीर्थ पर पाँव धरे तो मोक्ष, एक मंदिर बनावें तो मोक्ष वगैरह उटपटांग आक्षेप दिये है । ऐसा कोई मानता ही नहीं है । ‘स्वलब्धि से अष्टापद गिरि पर जो जाता है वह उसी भव मे मोक्ष में जाता है' यह परमात्मा महावीर ने फरमाया और गौतम स्वामी वहाँ पर गये वगैरह की पुष्टि उत्तराध्ययन । 65
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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