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"सांच को आंच नहीं".
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रजस्वला थी । उसने बताया मेरे पीरीयडके दिनों में मैं जब-जब ताजे फूलों को स्पर्श करती हूं, वे मुरझा जाते हैं। डॉ. सीके ने उसकी प्रायोगिक जाँच की
एक ही प्रकार के, एक ही समय में लिए हुए फूल उस नौकरानी और दुसरी स्त्री को दिये । रजस्वला स्त्री के फूल ४८ घंटे में सुक गये, दुसरे ४८ घंटे में उसकी पंखुडियां गिर गयी। जबकि दुसरी स्त्री के फूल दुसरे दिन भी ताजे रहे और चौथे दिन मुरझायें ।
२. अमेरिका में प्रसिद्ध जोन होप कींस युनिवर्सिटी के लेबोरेटरी में मार्कर और लोबीन दो लेडी डॉक्टरोने प्रो. सीके के प्रयोग, वनस्पति के पौधोपर करके सिद्ध किया कि मासिक प्रसंग में स्त्री के शरीर में 'मीनोटोक्सिन' नाम का जहर उत्पन्न होता है । जिसका 'केमिकल फोर्म्युला' 'ओक्सीकोलेस्टरीन ' के जहर से मिलता है । उस काल में घर का कार्य वर्ज्य है, यह सचमुच सत्य और सचोट है ।
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३. वीएना युनिवर्सिटी के प्रध्यापक डॉ. सीकी ने मेडिकल रीव्यु में मासिक धर्म संबंधी विस्तृत नोंध में बताया कि - रजस्वला स्त्री के स्पर्श की चेतन सृष्टि पर बहुत ही बुरी असर होती है । उन दिनों में जहर उसके श्वासोश्वास में नहीं, परंतु पसीने में होता है; जो जहरीला पसीना रक्तकणों द्वारा बाहर निकलता है । वह जहर १०० डिग्री से उबलते पानी में भी नष्ट नहीं होता है । गरमी में रखने पर या पानी में उबलने पर भी वनस्पति सृष्टि पर असर करने की उसकी शक्ति में फर्क नहीं पडता है ।
४. प्राचीन वैज्ञानिक प्लीनी स्पष्ट शब्दों में कहता है
'मासिक धर्मवाली स्त्री की हाजरी में दारु का स्वाद बिगडता है । पेड पर से फल खिरते है, खिले हुए फल - फूल मुरझाते है । बर्तनों को जंग लगता है । काँच वगैरह की चमक कम होती है । धारदार हाथियारों की धार पर भी असर होती है । लेकिन यह सब असर धीमी गति से होने से ख्याल नहीं आता है ।
५. ई.स. १८२० में डॉ. बीसेके ने सायन्टीफिक प्रयोग द्वारा लिखा है कि स्त्री की चमडीमें मीनोटोक्सीन नाम का विष मासिक धर्म में पैदा होता
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