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________________ 6000 “सांच को आंच नहीं" 0902 - शास्त्र में अनलसूत्र में दीक्षा के अयोग्य में रुग्ण - रोगी है, उसे दीक्षा नहीं दी जाती । परंतु दीक्षा के बाद कोई रोगी बने तो उसका पालन किया जाता है । वैसे ही स्त्रियों को मासिक धर्म में धर्मानुष्ठानादि निषिद्ध होने पर भी साध्वीजी एवं पौषध में रही हुई स्त्रीको मासिक धर्म आ जाने पर यतनापूर्वक अनुष्ठानादि करना विहित है । ये नियम नये नहीं घडे है, पूर्वाचार्यों से चली आती अविच्छिन्न परंपरा से सिद्ध है। जिससे धर्म आराधना में अंतराय नहीं लगता है । उल्टा इन नियमों का भंग भयंकर आशातना का कारण बनता है। .. आगम में जो आपवादिक वाचना का विधान है, वह भी साध्वीजी के लिए है, गहस्थों के लिये नहीं है, जिससे सर्वज्ञों के विधानों को दूषित करने के आक्षेप या तो अज्ञानता प्रयुक्त अथवा तो अभिनिवेश प्रयुक्त है । जो सूत्रविषय के अनधिकारी है, उनमें सूत्र को लगाना सर्वज्ञों के आगम को दूषित करना है। एक्सीडेंट में खून बहते रहने के प्रसंग में एवं दीर्घकालीन रोग आदि में मनमें नमस्कार मंत्रादि का स्मरण कर ही सकता है, दुसरे भी उसे आराधना करा सकते हैं । मनमें नमस्कार मंत्र का स्मरण किसी भी अवस्था में निषिद्ध नहीं है । जिससे कोई विरोध नहीं है। ___ इसलिए आगम और अविच्छिन्न परंपरा से सिद्ध वस्तु को कुतर्कों से असिद्ध करने की चेष्टा ही वास्तविक मूढता है । शास्त्र में ‘लोगविरुद्धच्चाओ' यानि लोक विरुद्ध के त्याग की बात आती है, विज्ञान से भी मासिक का अपालन अनेक दोषों का कारण सिद्ध है । ऐसी प्रत्यक्षसिद्ध वस्तु का अपलाप करना और लोकविरुद्ध का आचरण करना क्या जिनशासन बता सकता है ? कदापि नहीं ! सामान्य फोडा फुटना - खून वगैरह से मासिक धर्म में बहुत ही अंतर है । उसका पालन नहीं करना अनेक दोषों का कारण है । जो वैज्ञनिक प्रमाणों से भी सिद्ध है, वह इस प्रकार - १. डॉ. सीके ने देखा -फूलों का गुच्छा दुसरे दिन एकदम मुरझा गया था। ऐसा कभी होता नहीं था । उस ऋतु में वे फूल कई दिनों तक ताजे रहते थे। उसकी तलाश करने पर पता चला कि जिस नौकरानी ने उसे रख्ने थे वह 62
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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