SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -“सांच को आंच नहीं" 09602 . संक्षेप में उपर की कृतियों से साररुपः यह हकीकत प्राप्त होती है कि लोकाशाह ने मूर्ति, मूर्तिपूजा सिद्धांत से विरुद्ध है, इसलिये उसका विरोध नहीं किया, परंतु यतियों के साथ एवं संघ के साथ झगडे के कारण क्रोधावेश में यति और संघ का विरोध किया। ... यति सूत्र की बात करें इसलिये सूत्र का विरोध किया । यति सामायिक वगैरह धार्मिक क्रिया का कहे इसलिये धार्मिक क्रिया का विरोध किया । यति मूर्तिपूजा का कहे इसलिए मूर्तिपूजा का विरोध किया। संघ के साथ झगडा . होने से दान, स्वामिवात्सल्य वगैरह का विरोध किया । लोकाशाह -::... ... १. सूत्रों को नहीं मानते थे। २. सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, प्रत्याख्यान नहीं मानते थे। ... १. ३. दान, मंदिर, मूर्ति - मूर्तिपूजा नहीं मानते थे। ___यह हकीकत उनके समकालीन - निकटकालीन साहित्य से प्राप्त होती है । लोकाशाह को धार्मिक क्रियाओं का विरोध होने से उसका मत नहीं चल सके ऐसा था, इसलिए उनके अनुयायियों ने लोकाशाह के बाद बदल करके धार्मिक क्रियाओं का स्वीकार किया, बत्तीस आगम मान्य किये, मूर्ति-मूर्तिपूजा मान्य की, जो लोंकागच्छ में चालु थी। . . . . . ___स्थानकवासी जो अभी मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं, उसका प्रारंभ मुनि धर्मसिंहजी और लवजी ऋषिने किया । सं. १६८५ में शिवजी गुरु से अलंग पडकर धर्मसिंहजी ने दरियापुरी संप्रदाय स्थापन किया । सं. १६९२ में बजरंगजी गुरु से अलग पडकर स्वयं वेश पहनकर लवजी ने खंभात संप्रदाय की शरुआत की । उसके बाद में सं. १९१६ में धर्मदासजी ने दीक्षा ली । ये तीसरे क्रियोद्धारक बने । ये धर्मसिंहजी तथा लवजी में से एक को भी नहीं मानते थे । धर्मसिंहजी ने आठकोटी मत चलाया। लवजी ने सं. १७०८ से २४ घंटे मुहपत्ती का आग्रह चलाया । उसको इनके दुसरे क्रियोद्धारकों ने भी अपनाया । तीनोंने मूर्ति-मूर्तिपूजा का विरोध वापिस चालु किया । धर्मसिंहजी और लवजी सुरत में मिले थे। ये दोनों एक दुसरे से सहमत नहीं हुए, इतना ही नहीं, वे एक दुसरे को जिनाज्ञाभंजक और मिथ्यात्वी तक कहते थे। 59
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy