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________________ -G000 “सांच को आंच नहीं" (0902 चारों महाविगइयाँ ही कहलाएगी एवं चारों अभक्ष्य भी है । प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हें अभक्ष्य माना है । करीब ११०० साल पूर्व विक्रम की दसवीं सदी में हुए विद्धान दिगंबराचार्य अमृतचन्द्रजी ने 'पुरुषार्थसिद्धयुपाय' ग्रंथ में जीवोत्पत्ति के कारण इन्हें अभक्ष्य मानी है। ... मधु मद्यं नवनीतं पिशितं च महाविकृतयस्ताः । ... . ... वल्भ्यन्ते न व्रतिना तदर्णा जन्तवस्तत्र ॥६॥ “मधु-अर्थात् शहद भी अभक्ष्य है । मधु-मक्खियां अनेक वनस्पतियों के फूलों के रस को इकट्ठा करके उस पर बैठती हैं । भील, कोल आदि असंस्कारी जाति के लोग आग लगाकर, धुआँ करके मक्खियों को उडाते हैं और मक्खियों द्वारा बडी मुसीबत से तैयार किये हुए छते को तोडकर, कपडे में बांधकर निचोड लेते हैं । निचोडते समय मक्खियों के अण्डों का रस भी उसमें मिल जाता है । इस प्रकार घृणास्पद और पाप से पैदा होनेवाला मधु खाने योग्य नहीं है ।” (जैन तत्त्व प्रकाश-पृ. ४९७) . “स्थानकवासी धर्म का ज्ञान" की समीक्षा इस प्रकरण और आगे के प्रकरण में लेखकश्री ने कल्पसूत्र में निर्दिष्ट भस्मग्रह की बात के आधारपर खुद के संप्रदाय में चलती परापूर्व से पीटी पिटायी काल्पनिक - तथ्यविहीन बातें लिखी है । जिनके उत्तर, पूर्व में अनेक बार दिये गये हैं, फिर भी इनके पास दुसरे कोई भी प्रामाणिक ऐतिहासिक प्रमाण नहीं होने से करें भी क्या ? वे की वे बातें रटे जाते है । इस प्रकरण में भस्मग्रह के कारण शासन अवनति - असंयति पूजा - हिंसा-आडंबर - परिग्रहधारी - शिथिलाचारी साधु.... लौंकाशाह ने धर्म को पुनर्जीवित किया वगैरह - वगैरह... अनेक बातें की है, जिसके जवाब के लिये देखें मध्यकाल के घोटाले की समीक्षा' प्रकरण में पट्टावली पराग का पाठ । “श्रीमान् लोकाशाह” में ज्ञानसुंदरजी म. उस समय की परिस्थिति का वर्णन इस प्रकार करते है : - 52
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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