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________________ -600 “सांच को आंच नहीं” (0902 -- “आज यह बात कह देना बच्चों का खेल सा हो गया है कि पूर्व समयमें जैन साधुओने शिथिलाचारी हो जैन शाशन को बड़ी हानि पहुँचाई थी। पर यदि थोड़ासा परिश्रम कर तत्कालीन इतिहास को देखा जाय तो, यह कहे बिना कदापि नही रहा जायेगा कि उस विकट समय में चाहे उनमें से कोई आचार्य अपवादसेवी भले ही रहे हों, पर उस समय उन्होंने हजारों आपत्तिया उठा कर भी जो काम किया है, वह उनके बाद सहस्त्रांश भी किसी ने किया हो ऐसा एक भी उदाहरण दृष्टिगोचर नहीं होता है । यदि यह कहा जाय कि उस विकट समयमें उन आचार्यों ने जैन धर्म का जीवन सुरक्षित रक्खा, तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है। भगवान महावीर स्वामी से १००० वर्ष तक पूर्व-श्रुत ज्ञान का प्रभावशाली युग है, उसके बाद वीरात् ग्यारवी शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी का काल चैत्यवास का समय है । इन पांच सौ वर्षों में जैनाचार्योंने जितने राजाओं को जैन बनाया, तथा जितने अजैनों को जैन बनाया, जितने तात्विक विषयों के ग्रंथ बनाए, और जितने शास्त्रार्थ कर विजय वैजयन्ती फहराई उतने पीछे के इतिहास में नहीं मिलते है । और यह भी नहीं है कि उस समय सब शिथिलाचारी एवं चैत्यवासी ही थे, क्योंकि उस समयभी कई सारे क्रियापात्र एवं क्रिया उद्धारक हुए हैं । और उस समय जो केवल चैत्यवासी, एवं शिथिलाचारी ही थे, उनकी नसों में भी जैन धर्म का गौरव अक्षुण्ण रखने को वह जोश भरा हुआ था, जो पीछे के साधुओं में आंशिक रूप से ही विद्यमान रहा । परन्तु आज हम आलीशान उपाश्रय, स्थानक और गृहस्थों के बंगलों में आराम करते हुए भी कुछ नहीं करते हैं, केवल गृहस्थों पर दम लगा रहे है, वस्तुतः शिथिलाचार और चैत्यादिमठवास तो यही है। किन्तु अपनी गलती न देख उन पूर्वज महापुरुषों को शिथिलाचारी आदि से संयोजित कर उनकी निंदा करना यह भीषण कृतघ्नता ही है और संभव है आज इसी वज्र पाप से यह समाज रसातल में जा रहा है। = 53
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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