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________________ - G902 सांच को आंच नहीं" 09602 प्राचीन प्रतियों में अरिहंत चेइयाई' वाला पाठ टीकाकार के सामने था तभी तो उन्होंने उस पाठ को लेकर टीका की है। इतनी स्पष्ट बात होते हुए भी जैसे उल्लू को स्पष्ट सूर्यप्रकाश में भी अंधेरा दिखता है, वैसी लेखक की स्थिति है । उपरोक्त पाठ की विस्तृत समीक्षा के लिये देखिये “जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा” पृ. १०९ से पृ. ११६ । आगे इसमें जो चोरियाँ करना - रंगे हाथ पकडे जाना - एक झूठ के लिए अनेक झूठ करना वगैरह लंबी अपशब्दों की प्रस्तावना रची है, वह इनकी चोरी पकडी जाने से इनको ही लागू पडती है। इनकी जगजाहिर चोरियों के लिए इसी पुस्तिका में देखिये । “नमुत्थुणं पाठ प्रक्षेपः” की समीक्षा। "बावीस अभक्ष्य की समझ" की समीक्षा .. २२ अभक्ष्य का स्पष्ट पाठ आगम में न होने मात्र से उसको आगम विरुद्ध कहेंगे तो स्थानकवासी पंथ में अनेकानेक बातें आगम में नहीं है, वे मानते हैं तो वे क्या आगमविरुद्ध है ? २२ अभक्ष्य का त्याग अहिंसा में उपष्टंभक है। आगम में अनेक बातें नहीं होने पर भी पूर्वाचार्यों से परंपरा रुप मे चली आती है , वे आगम बाधित नहीं गिनी जाती है । १२वाँ अंग दृष्टिवाद विच्छेद है, १४ पूर्व विच्छेद है उनमें अनेक बातें थी, जो पूर्वाचार्यों की परंपरा से चली आती है । संसक्त नियुक्ति पूर्व में से उद्धृत है, उस में भी कच्चे गोरस में द्विदल के मिश्रण से जीवोत्पत्ति बतायी है, उसी प्रकार कच्चे गोरस में कुसुंबसाग के मिश्रण से भी जीवोत्पत्ति बतायी है । बृहत्कल्पभाष्य में भी - पालंकलट्टसागा मुग्गकयं चामगोरसुम्मीसं । संसज्जइ अ अचिरा तं पि नियमा दुदोसाय ॥६०॥ पूर्वाचार्यों की परंपरा से द्विदल - दही संयोग से जीवोत्पत्ति मानी जाती है । योनि प्राभृत ग्रंथ हाल में विच्छेद है, जिसमें द्रव्यों के मिश्रण से 50
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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