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________________ "सांच को आंच नहीं" 66 " मूर्तिपूजा: पाश्चात्य विद्वान" की समीक्षा इस प्रकरण में लेखक ने मिस्टर लेसन साहिब का मन्तव्य दिया है कि बौद्ध और जैन धर्म में मूर्तिपूजा अन्य धर्म के प्रभाव से चालू हुई, यह केवल उनकी कल्पनामात्र है । बाकि दयानंद सरस्वती कहते है- अन्यधर्मों में जैनों के देखादेखी - मूर्तिपूजा चालु हुई है । अतः किसी के भी अभिप्राय मात्र से तत्त्वनिर्णय नहीं होता है। आगम शास्त्र से ही जैन धर्म में अनादिकाल से मूर्तिपूजा सिद्ध होती है । जो इसी पुस्तिकामें आगे-पीछे अनेक पाठों से सिद्ध किया गया है। “रात्रि में पानी रखना " की समीक्षा जिनशासन अनेकांतमय है, उत्सर्ग - अपवाद से चलता है । उत्सर्ग के स्थान में उत्सर्ग का एवं अपवाद के स्थान में अपवाद का सेवन करना आवश्यक होता है । कुछ परिस्थितियों में अपवाद के स्थान पर उत्सर्ग का सेवन करने पर भी आराधक होता है, परंतु कुछ परिस्थितियों में अपवाद के स्थान पर उत्सर्ग की पकड़ रखने पर विराधक होता है । उत्सर्ग - अपवाद की सही जानकारी के लिए गुरुगम से छेदग्रंथों के तलस्पर्शी अध्ययन की आवश्यकता रहती है । परिणतादि अनेक गुणों से युक्त साधु ही उसका अधिकारी होता है, सभी साधु भी उसके अधिकारी नहीं है, ऐसा शास्त्र कहते हैं । अरे छेदसूत्र तो क्या दुसरे आगमों के लिये श्री व्यवहारसूत्र १० वे उद्देशें में स्पष्ट रीति से बताया है, अमुक आगम अमुक वर्ष पर्यायवाला साधु ही पढ सकता है । इतना स्पष्ट पाठ होने पर भी ये महाशय पृ. २६ पर मूर्तिपूजकों पर “भक्तजनों को शास्त्र पढने और देखने से महान भय बताकर कोसों दूर रख दिया है ।" ऐसा गलत आरोप लगाकर अपनी अज्ञानता - अभिनिवेश प्रकट करते है । 47
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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