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________________ -G000 सांच को आंच नहीं” 09602 लेखक कूटनीति से गलत पाठ पेश कर रहे है । पाठक स्वयं उपर के पाठ से निर्णय करें। प्रश्नव्याकरण के पाठ से तो उल्टी खुद की जांघ ही खुली हुई । इन्होंने जो पृ. ३७ पर, स्थानकवासियों का आगमानुसार उपकरण रखने की बात लिखी है, वह उड जाती है । इन के पास शास्त्र में बताये पटल, रजस्त्राण, गोच्छग उपकरणों का नामोनिशान नहीं है । यह मत गृहस्थ से निकला होने से, संमूर्छिम है । जिससे परमात्मा की विशुद्ध परंपरा न होने से शास्त्र में लिख्खे उपकरण, प्रतिलेखन विधि वगैरह के ज्ञान से रहित है । अतः कल्पित उपकरण एवं विधियाँ चलायी है । डंडा रखना आचारांग - दशवैकालिकादि से सिद्ध है । भगवती शतक ८ उद्देश ६ में स्पष्ट पाठ है - “एवं गोच्छग रयहरणं चोलपट्टग कंबल लट्ठी संथारग पदृगा भाणियबा ॥” अत: “इन उपकरणों को मनमते रखने की परंपरा चलाकर भी अपने को जैन साधु कहते है और फिर भी लिखते समय इनको भान नहीं रहता कि खुद की जंघा पर कुल्हाडी चलाने रुप हम यह क्या पागलपन कर रहे है ? यही अज्ञानदशा और भवितव्यता है।” ये लेखक के शब्द किस को लागू होते हैं, उसका निर्णय पाठक ही करें! ___ आगे भद्रबाहु के ८वे स्वप्न का फल-जिन-जिन स्थानों पर प्रभु के कल्याणक हुए, उन-उन स्थानों पर धर्म की हानि होगी - यह जो है उसका लेखक उल्टा अर्थ कर रहे है । उन-उन स्थानों पर मंदिर बने इसलिये धर्महानि बता रहे है । लेखक की कुबुद्धि देखिये - मंदिर से अंतर में कितना द्वेष भरा है। अगर स्थानक बनते तो इनके हिसाब से धर्मवृद्धि होती ! वास्तविकता तो यह है कि उन स्थानों में जैनों की वसति नहीं रहेगी - उज्जड बनेंगे - इसलिए धर्म की हानि होगी । जो आज भी प्रत्यक्ष हैं। ___ आगे लेखक श्री 'पूजाकोटिसमं स्तोत्रं' यह जैनतत्त्वादर्श का पाठ देकर सारी जिंदगी पूजा करे तो भी एक स्तोत्रपाठ के फल बराबर नहीं होता, यह हिसाब लगाकर मूर्तिपूजकों को मूर्ख - महामूर्ख कह रहे है । वस्तुत: ये पदवीयां उनको खुद को ही लगती हैं, चूंकि मूर्तिपूजक तो स्तोत्रपाठ, मंदिर 45
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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