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________________ -G006 सांच को आंच नहीं" 09602 - पीछे लेखकश्री झूठे शिलालेख लिखकर गाडने की कुकल्पना करते हैं विचार करें - प्रामाणिक इतिहास से ज्ञात होता है कि लौंकाशाह के पूर्व मूर्तिपूजा का विरोध था ही नहीं तो भला कौन और क्यो हजारों की संख्या में लेख-मूर्तियां गाडने की चेष्टा करेगा लेखककी कल्पना के हिसाब से तो वैसा कोई सर्वशक्तिमान व्यक्ति मानना पडेगा जो जगह-जगह पर, विदेश में - अनार्य क्षेत्रों में - दरिये में भी हजारों की संख्या में लेख-मूर्तियाँ आदि गाडने का या डालने का काम करता होगा । या तो ऐसे हजारों व्यक्ति मानने पडेंगे, जिनको कूटलेखों का काम सोपा हो । कैसी भद्दी कल्पना है. महाशय की ! विदेश के और भारत के महान् इतिहासज्ञ - महान् विद्धान जिन लेखों को सच्चे मानते हैं, जिन लेखों के आधार पर इतिहास की गुप्त कड़ियाँ सुलझती है और इतिहासकार आनंदित होते है, उन लेखों को महाशय कल्पित मानने की चेष्टा करते है । और संमूछिम जैसी जिसकी उत्पत्ति है, जिसकी प्राचीनता का एक भी प्रमाण नहीं है, सभी विद्वानों ने जिसे अर्वाचीन माना है, ऐसे स्थानकवासी पंथको प्राचीन सिद्ध करने की कुकल्पनाएँ करते हैं । है ना लेखक की बुद्धिशालीता ? अनेक पूर्वाचार्यों द्वारा प्रमाणित शंखेश्वर पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्राचीनता, नियुक्ति चूर्णि - टीकादि से भी सिद्ध जीवित स्वामी की प्रतिमा को ढोंग - तुत कहने की कुबुद्धि सुझती है । रे मिथ्यात्व ! तेरा कैसा प्रभाव ? बडे-बडे विद्धानों को कदाग्रह से भान भुला देता है। - पकडी गई बेईमानी !!! आगे लेखक की बेईमानी देखिये - कलिकालसर्वज्ञ आ. श्री हेमचंद्रसूरिजी म. के. योगशास्त्र पृ. २८७ का पाठ अपनी कुबुद्धि से शब्द जोडकर गलत अर्थ करते है । योगशास्त्र में मूर्तिपूजा का एक शब्द में भी निषेध नहीं है, अपितु जिनपूजा की विस्तृत विधि बतायी है । ग्रंथकार तो अलग ही कह रहे है । सावद्य आरम्भ में शास्त्रकार वचन से भी अनुमोदना न हो उस बात का ध्यान रखते है । “स्नान विलेपनादि स्वतः सिद्धवस्तु का उपदेश नहीं होता है परंतु जो पूजा वगैरह अप्राप्त वस्तु हो उसी को शास्त्र -43
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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